"भैया ये दुनियादारी के रिश्ते निभाने से निभते है बातो से नही, ये मैं ही थी जो अब तक निभाती आयी मगर अब नही।" 'आप्रेशन' के बाद जब से भावना को होश आया उसके दिमाग में यही बात बार बार आ रही थी जो उसने दो वर्ष पहले क्रोध में आ भाई को कही थी और उसकी कही बात ने उनके रिश्ते को एक अंतहीन चुप्पी में बदल दिया था। यही नही भाई की घोर परेशानी में भी उसने अपनी जिद के चलते दोबारा भाई के घर का रूख नही किया था।
"रिपोर्टस आर नाॅर्मल भावना, डाॅक्टर ने कहा है जल्दी ही छूट्टी मिल जायेगी।" पति की आवाज ने उसकी सोच को कुछ क्षण के लिये बाधित कर दिया पर जल्दी ही उसने सोच का सिरा फिर पकड़ लिया। "समय तो बहती हवा है कब किसे क्या रंग दिखाये पता नही तभी तो मुझे भी एक रंग दिखा ही दिया। बीमारी ने पकड़ा तो अपने पराये सभी को दूर जाते देखती रही, अब ऐसे में तो मानो भाई के लिये भी पत्थर दिल बन बदला लेने का समय आ गया था, लेकिन....... !"
"क्या सोच रही हो भावना? अब तुम बिलकुल ठीक हो।" पति ने उसको फिर कहीं खोया देख आवाज दी। "ईश्वर भला करे उस अजनबी का जिसने तुम्हे 'किडनी' देकर तुम्हारा जीवन बचाया और उसकी महानता देखो, अपनी पहचान भी जाहिर नही होने दी। फरिश्ता ही होगा कोई?" पति उसे दुआ देते हुये कह रहे थे और भावना अपनी गीली आँखे पोछने लगी क्योंकी वो जानती थी उस फरिश्ते को। अर्धबेहोशी की हालत में भी उसने भाई के प्यार भरे स्पर्श को महसूस कर लिया था और भाई के कहे शब्द अभी तक मन को 'बीती ताहि बिसार दे' का पाठ पढ़ा रहे थे। "भावो, पता नही मैं रिश्ते निभा पाया जा नही, पर मन से कभी रिश्ता तोड़ नही पाया। पता नही तुम मेरा ये 'फैसला' स्वीकार करती या नही, शायद इसीलिये मैं सामने आने की हिम्मत नही कर पा रहा हूँ।"
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'विरेन्दर वीर मेहता' (मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
सुन्दर लघु कथा के लिये बधाई । |
आदरणीय वीरेंदर जी, इस प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई. कई धारावाहिकों तथा फिल्मों में ऐसे कथानक यहाँ वहां पड़े है इसलिए ये बिलकुल चकित नहीं करते बल्कि इनका पूर्वाभास फिर 'वही वही' की याद अवश्य दिलाते है. इन दिनों 'किडनी-कथा' तो डेली सोप और फिल्मों का प्रिय विषय बन गया है. ऊपर से केवल दो साल पहले जिस भाई से दूरियां बढ़ी उसे पतिदेव नहीं पहचानते ये भी बड़ी 'डेली सोप वाली' विडंबना है. सादर
हार्दिक बधाई वीर मेहता जी!रिश्तों के उतार चढाव को कितनी खूबसूरती से एक मार्मिक लघुकथा के रूप मे पिरोया है!आपकी लेखनी को बार बार सलाम!
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