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"एक आखिरी सवाल!" साक्षात्कार लेते अधिकारी ने उसके चेहरे पर एक गहरी नजर डालते हुये कहा। "अपनी पहचान खोते हमारे 'प्राॅड्क्ट' को 'मार्केट' में बरकरार रखने के लिये तुम किस स्तर तक नीचे जा सकते हो?"
"जाहिर है जब कम्पनी मुझे इतने आकर्षक और बेहतर जीवन जीने का अवसर देने जा रही है तो उसकी पहचान कायम रखने के लिये मैं किसी भी निचले स्तर तक जा सकता हूँ।" उसने मुस्कराते हुये जवाब दिया।
"गुड! बहुत अच्छे जवाब दिये तुमने, लेकिन 'साॅरी यंगमैन'! हम तुम्हे ऐसा कोई अवसर नही दे पायेंगे क्योंकि अभी अभी हमें तुम्हारी वास्तविक पहचान हुयी है।" साक्षात्कार लेने वाला अधिकारी एकाएक गंभीर हो चुका था।
'विरेन्दर वीर मेहता' (मौलिक व अप्रकाशित)

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Comment by kanta roy on September 16, 2015 at 10:28pm

" किसी भी निचले स्तर तक "---ये कभी भी किसी के लिये मान्य नही होना चाहिये । व्यक्ति की पहचान उसकी जुबान और दिल से निकले शब्द लाख छुपाने पर भी कायम कर ही देते है । बेहतरीन लघुकथा हुई है आदरणीय वीर मेहता जी । बधाई कबूल फरमायें । 

Comment by pratibha pande on September 16, 2015 at 9:57pm

युवा इस हालत तक पहुँचते क्यों है ,ये भी विचार करने की बात है ,नैतिक स्तर गिर जाना ही अकेली  वजह नहीं है ,,बेरोजगारी इस हद तक पहुँच गई है हमारे देश में कि बड़ी बड़ी डिग्री वाले चपरासी की नौकरी का आवेदन कर रहे हैं ,विचारोत्तोजक कथा के लिए आपको बधाई आदरणीय विरेंद्र्वी र मेहता जी 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on September 16, 2015 at 12:10pm

बहुत बढ़िया सीख देती लघुकथा. इस प्रस्तुति पर बधाई आदरणीय वीरेंदर जी 

Comment by VIRENDER VEER MEHTA on September 16, 2015 at 11:15am
आदः डाॅ गोपाल नारायणजी दो शब्दो में कथा की समीक्षा करते हुये आपने जो मेरा मार्गदर्शन किया है उसके लिये दिल से आभार। भविष्य में आप की आशा पर खरा उतरने की पूरी कोशिश करूँगा।
Comment by VIRENDER VEER MEHTA on September 16, 2015 at 11:10am
आदरणीय शिज्जु शकूर जी रचना पर अपना अमूल्य समय देते हुये अनुज की हौसला अफजाई के लिये आपका मैं तहे दिल से शुक्र गुजार हूँ।
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on September 16, 2015 at 11:03am

सुन्दर नैतिक कथा


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on September 16, 2015 at 8:28am
आजकल कॉर्पोरेट कंपनियाँ नैतिकता और इंसानियत खोती जा रही हैं । फिर भी अभी ऐसे लोग हैं जो व्यवसाय के लिये नैतिकता और इंसानियत से समझौता नहीं करते । बहरहाल आपको बधाई इस रचना के लिये
Comment by VIRENDER VEER MEHTA on September 15, 2015 at 1:31pm
आदः विजय शंकरजी कथा पर आपकी सकारत्मक प्रतिक्रिया के लिये हार्दिक आभार। ये वास्तव मे एक कटू सत्य है कि अधिकांश कंपनिया ऐसे ही व्याक्ति चाहते है लेकिन समाज में ऐसे लोगो की भी कमी नही जो अभी भी मूल्यो मे विश्वास रखते है। सादर।
Comment by Dr. Vijai Shanker on September 15, 2015 at 12:40pm
वैसे व्यवसायिक क्षेत्र में ऐसे ही लोगों की मांग होती है जो किसी भी हद तक जा सकें।
बधाई , आदरणीय वीरेन्द्र जी , इस लघु - कथा पर , सादर।

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