For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

सुन्दरकांड
जामवंत के बचन सुहाए ! सुनि हनुमंत हर्दय अति भाए !!
तब लगि मोहि परिखेहु तुम्ह भाई ! सहि दुख कंद मूल फल खाई !!
जब लगि आवों सीतहि देखी ! होइहि काजू मोहि हरष बिसेषी !!
यह कहि नाइ सबन्हि कहूँ माथा ! चलेउ हरषि हिएँ धरि रघुनाथा !!
सिंधु तीर एक भूधर सुन्दर ! कौतुक कूदी चढ़ेउ ता ऊपर !!
बार बार रघुबीर संभारी ! तरकेउ पवनतनय बल भारी !!
जेहि गिरि चरन देई हनुमंता ! चलेउ सो गा पाताल तुरंता !!
जिमि अमोध रघुपति कर बाना ! एही भांति चलेउ हनुमाना !!
जलनिधि रघुपति दूत बिचारी ! तौं मैनाक होहि श्रमहारी !!
{दोहा १}
हनुमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रणाम !
राम काजू कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम !!

Views: 560

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Rash Bihari Ravi on June 17, 2010 at 1:15pm
सीता तैं मम कृत अपमाना ! कटिहऊँ तव सिर कठिन कृपाना !!
नाहीं त सपदि मानु मम बानी ! सुमुखि होति न त जीवन हानी !!
स्याम सरोज दाम सम सुंदर ! प्रभु भुज करि कर सम दसकंधर !!
सो भुज कंठ कि तव असि घोरा ! सुनु सठ अस प्रवान पन मोरा !!
चन्द्रहास हरू मम परितापं ! रघुपति बिरह अनल संजातं !!
सीतल निसित बहसि बर धारा ! कह सीता हरू मम दुख भारा !!
सुनत बचन पुनि मारन धावा ! मयतनयाँ कहि नीति बुझावा !!
कहेसि सकल निसिचरिन्ह बोलाई ! सितहि बहु बिधि त्रासहु जाई !!
मास दिवस महूँ कहा न माना ! तैं मैं मारबि काढी कृपाना !!
[दोहा १० ]
भवन गयउ दसकंधर इहाँ पिसाचिनि बृंद !
सितहि त्रास देखावहिं धरहिं रूप बहु मंद !!
Comment by Rash Bihari Ravi on June 15, 2010 at 9:19pm
तरु पल्लव महूँ रहा लुकाई ! करइ बिचार करौं का भाई !!
तेहि अवसर रावनु तहँ आवा ! संग नारि बहु किएँ बनावा !!
बहु बिधि खल सीतहि समुझावा ! साम दान भय भेद देखावा !!
कह रावनु सुनु सुमुखि सयानी ! मंदोदरी आदि सब रानी !!
तव अनुचरीं करऊँ पं मोरा ! एक बार बिलोकु मम ओरा !!
तृन धरि ओट कहति बैदेही ! सुमिरि अवधपति परम सनेही !!
सुनु दसमुख खधोत प्रकासा ! कबहूँ कि नलिनी करइ बिकासा !!
अस मन अमुझु कहति जानकी ! खल सुधि नहीं रघुबीर बान की !!
सठ सुनें हरि आनेहि मोही ! अधम निलज्ज लाज नहीं तोही !!
[दोहा ९]
आपुहि सुनि खधोत सम रामहि भानु समान !
परुष बचन सुनि काढी असि बोला अति खिसिआन !!
Comment by satish mapatpuri on June 15, 2010 at 5:30pm
मानस- पाठ से पावन कोई काम नहीं है. आपने हर किसी का मानस पावन कर दिया गुरूजी.

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Rana Pratap Singh on June 14, 2010 at 11:35pm
प्रबिसि नगर कीजे सब काजा। हृदयँ राखि कौसलपुर राजा।।
गरल सुधा रिपु करहिं मिताई। गोपद सिंधु अनल सितलाई।।
गरुड़ सुमेरु रेनू सम ताही। राम कृपा करि चितवा जाही।।
अति लघु रूप धरेउ हनुमाना। पैठा नगर सुमिरि भगवाना।।
मंदिर मंदिर प्रति करि सोधा। देखे जहँ तहँ अगनित जोधा।।
गयउ दसानन मंदिर माहीं। अति बिचित्र कहि जात सो नाहीं।।
सयन किए देखा कपि तेही। मंदिर महुँ न दीखि बैदेही।।
भवन एक पुनि दीख सुहावा। हरि मंदिर तहँ भिन्न बनावा।।
दो0-रामायुध अंकित गृह सोभा बरनि न जाइ।
नव तुलसिका बृंद तहँ देखि हरषि कपिराइ।।5।।

लंका निसिचर निकर निवासा। इहाँ कहाँ सज्जन कर बासा।।
मन महुँ तरक करै कपि लागा। तेहीं समय बिभीषनु जागा।।
राम राम तेहिं सुमिरन कीन्हा। हृदयँ हरष कपि सज्जन चीन्हा।।
एहि सन हठि करिहउँ पहिचानी। साधु ते होइ न कारज हानी।।
बिप्र रुप धरि बचन सुनाए। सुनत बिभीषण उठि तहँ आए।।
करि प्रनाम पूँछी कुसलाई। बिप्र कहहु निज कथा बुझाई।।
की तुम्ह हरि दासन्ह महँ कोई। मोरें हृदय प्रीति अति होई।।
की तुम्ह रामु दीन अनुरागी। आयहु मोहि करन बड़भागी।।
दो0-तब हनुमंत कही सब राम कथा निज नाम।
सुनत जुगल तन पुलक मन मगन सुमिरि गुन ग्राम।।6।।

सुनहु पवनसुत रहनि हमारी। जिमि दसनन्हि महुँ जीभ बिचारी।।
तात कबहुँ मोहि जानि अनाथा। करिहहिं कृपा भानुकुल नाथा।।
तामस तनु कछु साधन नाहीं। प्रीति न पद सरोज मन माहीं।।
अब मोहि भा भरोस हनुमंता। बिनु हरिकृपा मिलहिं नहिं संता।।
जौ रघुबीर अनुग्रह कीन्हा। तौ तुम्ह मोहि दरसु हठि दीन्हा।।
सुनहु बिभीषन प्रभु कै रीती। करहिं सदा सेवक पर प्रीती।।
कहहु कवन मैं परम कुलीना। कपि चंचल सबहीं बिधि हीना।।
प्रात लेइ जो नाम हमारा। तेहि दिन ताहि न मिलै अहारा।।
दो0-अस मैं अधम सखा सुनु मोहू पर रघुबीर।
कीन्ही कृपा सुमिरि गुन भरे बिलोचन नीर।।7।।

जानतहूँ अस स्वामि बिसारी। फिरहिं ते काहे न होहिं दुखारी।।
एहि बिधि कहत राम गुन ग्रामा। पावा अनिर्बाच्य बिश्रामा।।
पुनि सब कथा बिभीषन कही। जेहि बिधि जनकसुता तहँ रही।।
तब हनुमंत कहा सुनु भ्राता। देखी चहउँ जानकी माता।।
जुगुति बिभीषन सकल सुनाई। चलेउ पवनसुत बिदा कराई।।
करि सोइ रूप गयउ पुनि तहवाँ। बन असोक सीता रह जहवाँ।।
देखि मनहि महुँ कीन्ह प्रनामा। बैठेहिं बीति जात निसि जामा।।
कृस तन सीस जटा एक बेनी। जपति हृदयँ रघुपति गुन श्रेनी।।
दो0-निज पद नयन दिएँ मन राम पद कमल लीन।
परम दुखी भा पवनसुत देखि जानकी दीन।।8।।
Comment by Rash Bihari Ravi on June 14, 2010 at 9:15pm
मसक समान रूप कपि धरी ! लंकहि चलेउ सुमिरि नरहरी !!
नाम लंकिनी एक निसिचरी ! सो कह चलेसि मोहि निंदरी !!
जानेहि नहीं मरमु सठ मोरा ! मोर अहार जहाँ लगि चोरा !!
मुठिका एक महा कपि हनी ! रुधिर बमत धरनीं ढनमनी !!
पुनि संभारि उठी सो लंका ! जोरि पानि कर बिनय ससंका !!
जब रावनहि ब्रह्म बर दीन्हा ! चलत बिरंची ख मोहि चिन्हा !!
बिकल होसि तैं कपि के मारे ! तब जानेसु निसिचर संधारे !!
तात मोर अति पुन्य बहुता ! देखेउँ नयन राम कर दूता !!
[दोहा ४]
तात स्वर्ग अपबर्ग सुख धरिअ तुला एक अंग !
तूल न ताहि सकल मिलि जो सुख लव सतसंग!!
Comment by Rash Bihari Ravi on June 14, 2010 at 8:36pm
निसिचर एक सिंधु महूँ रहाई ! करि माया नभ के खग गहई !!
जीव जंतु जे गगन उराहीं ! जल बिलोकी तिन्ह कै परिछाही !!
गहई छाहँ सक सो ना उराई ! एहि बिधि सदा गगनचर खाई !!
सोई छल हनुमान कहँ कीन्हा ! तासु कपटु कपि तुरतहिं चिन्हा !!
ताहि मारी मरुतसूत बीरा ! बारिधि पार गयऊ मतिधीरा !!
तहाँ जाई देखी बन सोभा ! गुंजत चंचरीक मधु लोभा !!
नाना तरु फल फुल सुहाए ! खग मुग बूंद देखी मन भाए !!
सैल बिसाल देखी एक आगें ! ता पार धाइ चढ़ेउ भय त्यागें !!
उमा न कछु कपि कै अधिकाई ! प्रभु प्रताप जो कालहि खाई !!
गिरि पर चढ़ी लंका तेहि देखी ! कहि न जाइ अति दुर्ग बिसेषी !!
अति उतंग जलनिधि चहु पासा ! कनक कोट कर परम प्रकासा !!
[छंद १, २ तथा ३ ]
कनक कोट बिचित्र मनि कुत सुंदरायतना घना !
चउहट्ट हट्ट सुबट्ट बीथीं चारू पुर बहु बिधि बना !!
गज बाजि खच्चर निकर पदचर रथ बरूथन्हि को गनै !
बहुरूप निसिचर जूथ अतिबल सेन बरनत नहीं बनै !!
बन बाग उपबन बाटिका सर कूप बापीं सोहहीं !
नर नाग सुर गंघर्ब कन्या रूप मुनि मन मोहहीं !!
कहूँ माल देह बिसाल सैल समान अतिबल गर्जहीं !
नाना अखारेन्ह भिरहिं बहुबिधि एक एकन्ह तर्जहीं !!
करि जतन भट कोटिन्ह बिकट तन नगर चहु दिसि रच्छहीं !
कहूँ महिष मानुष धेनु खर अज खल निसाचर भच्छहीं !!
एहि लागि तुलसीदास इन्ह की कथा कछु एक है कही !
रघुबीर सर तीरथ सरीरन्हि त्यागि गति पैहहिं सही !!
[दोहा ३]
पुर रखवारे देखी बहु कपि मन कीन्ह बिचार !
अति लघु रूप धरौं निसि नगर करौं पइसार !!

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Rana Pratap Singh on June 12, 2010 at 8:12pm
जात पवनसुत देवन्ह देखा। जानैं कहुँ बल बुद्धि बिसेषा।।
सुरसा नाम अहिन्ह कै माता। पठइन्हि आइ कही तेहिं बाता।।
आजु सुरन्ह मोहि दीन्ह अहारा। सुनत बचन कह पवनकुमारा।।
राम काजु करि फिरि मैं आवौं। सीता कइ सुधि प्रभुहि सुनावौं।।
तब तव बदन पैठिहउँ आई। सत्य कहउँ मोहि जान दे माई।।
कबनेहुँ जतन देइ नहिं जाना। ग्रससि न मोहि कहेउ हनुमाना।।
जोजन भरि तेहिं बदनु पसारा। कपि तनु कीन्ह दुगुन बिस्तारा।।
सोरह जोजन मुख तेहिं ठयऊ। तुरत पवनसुत बत्तिस भयऊ।।
जस जस सुरसा बदनु बढ़ावा। तासु दून कपि रूप देखावा।।
सत जोजन तेहिं आनन कीन्हा। अति लघु रूप पवनसुत लीन्हा।।
बदन पइठि पुनि बाहेर आवा। मागा बिदा ताहि सिरु नावा।।
मोहि सुरन्ह जेहि लागि पठावा। बुधि बल मरमु तोर मै पावा।।
दो0-राम काजु सबु करिहहु तुम्ह बल बुद्धि निधान।
आसिष देह गई सो हरषि चलेउ हनुमान।।2।।

agala comment agla doha hona chahiye

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 186 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का मिसरा आज के दौर के…See More
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"  क्या खोया क्या पाया हमने बीता  वर्ष  सहेजा  हमने ! बस इक चहरा खोया हमने चहरा…"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"सप्रेम वंदेमातरम, आदरणीय  !"
yesterday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

Re'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Saturday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"स्वागतम"
Friday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय रवि भाईजी, आपके सचेत करने से एक बात् आवश्य हुई, मैं ’किंकर्तव्यविमूढ़’ शब्द के…"
Friday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Wednesday
anwar suhail updated their profile
Dec 6
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

न पावन हुए जब मनों के लिए -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

१२२/१२२/१२२/१२****सदा बँट के जग में जमातों में हम रहे खून  लिखते  किताबों में हम।१। * हमें मौत …See More
Dec 5
ajay sharma shared a profile on Facebook
Dec 4
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"शुक्रिया आदरणीय।"
Dec 1
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, पोस्ट पर आने एवं अपने विचारों से मार्ग दर्शन के लिए हार्दिक आभार।"
Nov 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service