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आदरणीय , गज़ल का बहुत सफल प्रयास हुआ है , दिली बधाइयाँ आपको ।
अचानक आज ये कैसा ज़ुल्म पहरा गया मुझ पर -- इस मिसरे की कहन और तकतीअ दोनो के विषय मे और सोच लीजियेगा
लगे है जख्मकुछ ऐसे दुआ का भी असर न हो। इस मिसरे मे न की जगह ना ( 2 मात्रा ) की ज़रूरत है , और ना लिखने को सही नही माना जाता , सोचलीजियेगा ।
आदरणीय आमोद जी इस सुरीली बह्र पर बढ़िया प्रयास हुआ है बधाई.
बहुत ख़ूब..बधाई भाई आमोद जी..प्रयासरत रहें!..शुभकामनायें!
बहुत ख़ूब..बधाई भाई आमोद जी..प्रयासरत रहें!
आदरणीय आमोद जी सुरीला रुक्न लिया है आपने इस रचना के लिये
अचानक आज ये कैसा ज़ुल्म पहरा गया मुझ पर। इस मिसरे में तक्तीअ फिर से कर के देख लें ज़ुल्म पहरा यहां गडबड़ लग रही है
सितम इतने कहा से वो लेकर ढा गया मुझ पर।।
न बारिश है न सावन है हवा का भी नही झोंका।
ये कैसे गम के बादल हैं कहा से छा गया मुझ पर।। इस मिसरे में ये कैसे ब़म के बादल हैं बहुवचन और छा गया एक वचन । काफिया के अनुसार ये कैसा ग़म का बादल करना पड़ेगा भाई
चलो अब चाँद तारों तुम मेरी हालत पे हँस भी लो।
तुम्हे अच्छा स मौका है अमावस आ गया मुझ पर।। अमावस मे चांद कहां हो सकता है ? सा को गिरा कर पढा जा सकता है शायद तो स क्यू लिखना
लगे है जख्मकुछ ऐसे दुआ का भी असर न हो।
के वो तफसीसे मोहब्बत चला आरा गया मुझ पर।।
यहां भी असर न हो में 1 2 2 2 की जगह 1212 हो रहा है इसे असर गायब करने से 1222 तो हो जाएगा पर इस शेर को कुछ समय और दीजिये आमोद जी
बाकी तो गुणीजन ही बताएंगे ।
प्रयास के लिये बहुत बहुत बधाई ।
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