बह्र : २२ २२ २२ २२ २२ २
चेहरे पर मुस्कान लगाकर बैठे हैं
जो नकली सामान सजाकर बैठे हैं
कहते हैं वो हर बेघर को घर देंगे
जो कितने संसार जलाकर बैठे हैं
उनकी तो हर बात सियासी होगी ही
यूँ ही सब के साथ बनाकर बैठे हैं?
दम घुटने से रूह मर चुकी है अपनी
मुँह उसका इस कदर दबाकर बैठे हैं
रब क्यूँकर ख़ुश होगा इंसाँ से, उसपर
हम फूलों की लाश चढ़ाकर बैठे हैं
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(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Comment
आदरणीय धर्मेन्द्र भाई , क्या खूब गज़ल हुई है . हर शे र लाजवाब हैं , मतले तो कहना ही क्या , वाह !
चेहरे पर मुस्कान लगाकर बैठे हैं
जो नकली सामान सजाकर बैठे हैं -- हार्दिक बधाइयाँ ।
आदरनीय चौथे शे र के उला मे , अपना और सानी मे , उसका - सही है क्या ?
उनकी तो हर बात सियासी होगी ही
यूँ ही सब के साथ बनाकर बैठे हैं?
क्या बात! है आ० धर्मेन्द्र जी! हार्दिक बधाई!
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