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आ कांता जी आप को इस मार्मिक कथा के लिए बधाई. आप एक महिला हो कर महिला का दर्द समझ सकी. यदि सभी मातापिता इस बात को समझने लग जाए तो लड़कियों की दशा सुधरने में और तीव्रता आ जाए. बढ़िया. बधाई आप को पुन.
किटी के जोड़े पैसे अक्सर बड़ी रकम ही होती है और अधिकतर घर के पुरुषों की नज़र इस पर होती ही है। कहने को स्त्रीधन का नाम होता है हर जगह लेकिन समस्त मोटी रकम पर घर के मालिक की ही मल्कियत होती है। आभार आपको हृदयतल से आदरणीया प्रतिभा जी कथा का मर्म पकड़ने के लिए। सादर।
आपने बिकुल सही कहा है आदरणीय शहज़ाद जी "वसुधा " पर "वसुधा " सदा अपेक्षित ही रही है। उम्मीद है आसमान बदलने की वसुधा के लिए भी एक दिन। वसुधा न सही माँ ने बोलना और लड़ना शुरू तो कर दिया है। तहेदिल आभार आपको।
एक औरत की बेबसी को महसूस कर कथा का मर्म समझने के लिए दिल से आभार आपको आदरणीय सुशील सरना जी।
दिल से आभार आपको आदरणीय तेजवीर जी
किटी के जोड़े पैसे का मर्म तो शायद एक महिला ही समझ पायेगी ,पुरुष अक्सर किटी को सिर्फ खाओ पियो और यहाँ वहां की बातों तक सीमित समझ कर मजाक भी बनाते हैं , इतने चाव से जोड़े पैसे का हश्र वो ही' ढाक के तीन पात' अपने मन से तो खर्च नहीं हो पाए ना ,सरल सा दिखने वाला विषय गूढ़ मर्म लिए , बधाई आपको आदरणीया
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