कर्तव्यनिष्ठ - ( लघुकथा ) -
"सुषमा जी,यह क्या देख रहा हूं! कन्या गुरुकुल की लडकियों को अस्त्र शस्त्र और मार्शल आर्ट्स सिखाया जा रहा है!
"जी सर"!
"सुषमा जी, आपने किसकी अनुमति से यह शुरु किया है"!
"सर, इसकी अनुमति ज़िलाधीश महोदय ने दी है, जो कन्या गुरुकुल के अध्यक्ष हैं"!
"और इसका खर्चा कौन देगा"!
"उसकी व्यवस्था भी ज़िलाधीश महोदय ने किसी समाज़ सेवी संस्था के द्वारा कराई है"!
"मगर सुषमा जी इसकी क्या आवश्यकता थी"!
"सर आपने देखा नहीं, रविवार को मि॰ वर्मा ने एक लडकी के साथ ज्यादती करने की कोशिश की थी"!
"सुषमा जी, वर्मा जी, इस कन्या गुरुकुल के ट्रस्टी हैं, और आप यहां की प्राचार्य हैं!इस तरह छोटी छोटी बातों को तूल दैंगी तो कैसे काम कर पायेंगी"!
"सर, जब तक मैं यहां हूं , ये बच्चियां मेरी जिम्मेवारी हैं!मैं इनके भविष्य के लिये अपनी नौकरी क्या अपना जीवन भी दॉव पर लगा सकती हूं"!
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
हार्दिक आभार कल्पना भट्ट जी!
हार्दिक आभार श्याम नारायन वर्मा जी!
बहुत सुन्दर !! लघुकथा के लिये बधाइयाँ ॥ |
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