सुनयना की शादी को अभी तीन महीने ही हुए थे कि उसकी सास का फ़ोन आगया,"समधन जी, ज़रा फ़ुरसत निकाल कर अपनी लाडली को ले जाना"! और आगे बिना कुछ कहे सुने फ़ोन काट दिया!शाम को सुनयना के मॉ बापू पहुंच गये उसके ससुराल!
"कोई भूल हो गयी क्या हमारी सुनयना से"!
"नहीं जी, भूल तो हमसे हुयी जो इसकी भोली सूरत और एम. बी. ए. की डिग्री से धोखा खा गये"!
"आखिर हुआ क्या, बहिनजी, कुछ बताइये तो सही"!
"कोई एक बात हो तो बतायें! बिना उठाये सुबह उठती नहीं, महारानीजी, बिस्तर पर ही चाय चाहिये,रसोई के काम से सख्त परहेज़,राजू के आफ़िस जाते ही कमरा बंद कर ए. सी. चलाकर टी .वी. और लैप टॉप से चिपक जाना!दोपहर का खाना ,शाम की चाय और रात का खाना भी कमरे में!सास ससुर से कोई वास्ता ही नहीं"!
"असल में इकलौती संतान थी तो थोडा लाड प्यार में पली है"!
"हम नहीं दे सकते इतना लाड प्यार,बेहतर यही होगा कि इसे आप ले जाइये और इसे माटी की बन्नो से एक सुघड बहू बना कर ही वापस लाइये"!
(मौलिक और अप्रकाशित)
Comment
हार्दिक आभार आदरणीय डॉ विजय शंकर जी!आपने लघुकथा को समय दिया !विस्तार से विवेचना की!कमज़ोर पक्ष उजागर किया!शायद नयी ज़गह पर व्याह कर आये बहू को तीन महीने ही हुए थे तो हो सकता है जॉब की तलाश में हो!कुछ परिवार ऐसे भी होते हैं कि बहु तो शिक्षित चाहिये मगर जोब नहीं करायेंगे!आपका पुनः आभार!
हार्दिक आभार आदरणीय शेख उस्मानी जी!लघुकथा को अपना अमूल्य समय दिया, सराहना की ,साथ ही कितनी बारीकी से विशलेषण किया!पुनः आभार!
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