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जाने ये कैसा असर जिन्दगी का। "अज्ञात"

जाने ये कैसा, असर जिन्दगी का,
फूलों की चाहत है होती सभी को,        

काँटों भरा है, सफर जिन्दगी का।
मेहनत मशक्कत सब करते हैं फिर भी,

रस्ता न आता, नज़र जिन्दगी  का।     
बदलती फिजायें , बदलता जमाना,      

अंधेरा है देखो जिधर, जिन्दगी का।        
मन की मुरादें जब पूरी न होतीं,              

तो सपना है जाता, बिखर जिन्दगी का।
गरीबों को मिलती न रोटी कहीं भी,          

ये करते हैं कैसे, बसर जिन्दगी का।
भटकता हर इंसा कुछ पाने की जिद में,      

ये किस्सा इधर से उधर जिन्दगी का।

जाने ये कैसा असर जिन्दगी का।
अजय  शर्मा "अज्ञात"। 

मौलिक एवं अप्रकाशित।

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Comment by Dr Ashutosh Mishra on October 31, 2015 at 12:28pm

आदरणीय अजय जी इस रचना के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें.सादर 

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