जब थी उठी बरसात से,
पहले पहल भीनी महक,
था मन तरंगित हो उठा,
सुन पक्षियों की चह चहक,
गुमशुदा, अब बाग से,
क्यों कली कोमल हो गयी।
बीते पलों को याद कर,
आँख, बोझल हो गयी।
पत्थरों की शगल में,
सड़क सौतन क्या बनी,
हो द्रवित फिर आज वह,
कह उठी हो अनमनी,
आज मेरे गाँव से,
गली, ओझल हो गयी।
बीते पलों को याद कर,
आँख, बोझल हो गयी।
अब सघन पाषाण से,
वह आच्छादित हो गया,
आपसी सब भाईचारा,
भी विवादित हो गया,
एकता भी अब बदलकर,
आज दो दल हो गयी ।
बीते पलों को याद कर,
आँख, बोझल हो गयी।
अजय शर्मा " अज्ञात "
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
परम आदरणीय शिज्जू सर मेरे मनोभावों पर आपकी टिप्पणी से मन पुलकित हुआ। आभार प्रकट करता हूँ।
अजय जी ..आज आपकी दो रचनाएँ पढने का अवसर प्राप्त हुआ . अतीत के सुनहरे पलों की याद दिलाती इस शानदार रचना के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें सादर
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online