For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

भोजपुरिया लाल : भारत रत्न डा. राजेन्द्र प्रसाद

सदियों से भोजपुरिया माटी की एक अलग पहचान रही है। इस माटी ने केवल भोजपुरी समाज को ही नहीं अपितु माँ भारती को ऐसे-ऐसे लाल दिए जिन्होंने भारतीय समाज को हर एक क्षेत्र में एक नई दिशा एवं ऊँचाई दी एवं विश्व स्तर पर माँ भारती के परचम को लहराया। भोजपुरिया माटी की सोंधी सुगंध से सराबोर ये महापुरुष केवल भारत का ही नहीं अपितु विश्व का मार्गदर्शन किए और एक सभ्य एवं शांतिपूर्ण समाज के निर्माण में अहम भूमिका निभाई। यह वोही भोजपुरिया माटी है जिसको संत कबीर ने अपने विलक्षणपन से तो शांति, सादगी एवं राष्ट्र के प्रेमी बाबू राजेन्द्र प्रसाद ने अपनी विद्वता एवं कर्मठता से सींचा।
माँ भारती के अमर सपूत, बाबू राजेन्द्र प्रसाद ने 3 दिसंबर 1884 को बिहार के सीवान जिले के जीरादेई नामक गाँव में अवतरित होकर भोजपुरिया माटी को धन्य कर दिया। भोजपुरिया माटी जो भगवान बुद्ध, भगवान महावीर, संत कबीर आदि के कर्मों की साक्षी रही है, एक और महापुरुष को अपने आँचल में पाकर सुवासित और गौरवांवित हो गई। अपने लाल का तेजस्वी मुख-मंडल देखकर धर्मपरायण माँ श्रीमती कमलेश्वरी देवी फूले न समाईं और पिता श्री महादेव सहाय जो संस्कृत एवं फारसी के मूर्धन्य विद्वान थे अपनी विद्वता पर नहीं पर अपने लाल को देखकर गौरवांवित हुए।
प्रखर बुद्धि तेजस्वी बालक राजेन्द्र बाल्यावस्था में ही फारसी में शिक्षा ग्रहण करने लगा और उसके पश्चात प्राथमिक शिक्षा के लिए छपरा के जिला स्कूल में नामांकित हो गया। इसके बाद आगे की पढ़ाई के लिए वे टी के घोष अकादमी पटना में दाखिल हो गए। 18 वर्ष की आयु में युवा राजेन्द्र ने कोलकाता विश्वविद्यालय की प्रवेश परीक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त किया एवं 1902 में कोलकाता के ही नामचीन प्रेसीडेंसी कालेज में पढ़ाई शुरु की। इसी प्रेसीडेंसी कालेज में परीक्षा के बाद बाबू राजेंद्र की उत्तर-पुस्तिका की जाँच करते समय परीक्षक ने उनकी उत्तर-पुस्तिका पर ही लिखा कि ''The examinee is better than the examiner.'' (परीक्षार्थी, परीक्षक से बेहतर है।) बाबू राजेंद्र की विद्वता की इससे बड़ी मिसाल और क्या हो सकती है। बाबू राजेन्द्र की प्रतिभा दिन पर दिन निखरती जा रही थी और 1915 में उन्होंने विधि परास्नातक की परीक्षा स्वर्ण-पदक के साथ हासिल की। इसके बाद कानून के क्षेत्र में ही उन्होंने डाक्टरेट की उपाधि भी हासिल की।
पारंपरिकतावाद के चलते 12 वर्ष की कच्ची उम्र में ही यह ओजस्वी किशोर राजवंशी नामक कन्या के साथ परिणय-बंधन में बँध गया और तेरह वर्ष की दहलीज पर पहुँचते ही गौना भी हो गया मतलब किशोर राजेन्द्र अपनी पत्नी के साथ रहने लगा। ऐसा माना जाता है कि 65-66 वर्ष के वैवाहिक जीवन में मुश्किल से लगभग 4 साल तक ही यह महापुरुष अपनी अर्धांगनी के साथ रहा और बाकी का जीवन अपनी माँ भारत माता के चरणों में, मानव सेवा में समर्पित कर दिया।
माँ भारतीय का यह सच्चा सेवक अपनी माँ को फिरंगियों के हाथों की कठपुतली होना भला क्यों देख सकता था। इस महान भोजपुरिया मनई ने माँ भारती के बेड़ियों को काटने के लिए, उसे आजाद कराने के लिए स्वतंत्रता सेनानियों के साथ कंधे से कंधा मिलाने लगा और वकालत करते समय ही भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में अपने को झोंक दिया। यह महान व्यक्ति महात्मा गाँधी के विचारों, देश-प्रेम से इतना प्रभावित हुआ कि 1921 में कोलकाता विश्वविद्यालय के सीनेटर के पद को लात मार दिया और विदेशी और स्वदेशी के मुद्दे पर अपने प्रखर बुद्धि पुत्र मृत्युंजय को कोलकाता विश्वविद्यालय से निकालकर बिहार विद्यापीठ में नामांकन कराकर एक सच्चे राष्ट्रप्रेमी की मिसाल कायम कर दी। इस अविस्मरणीय एवं अद्भुत परित्याग के लिए भारती-पुत्र सदा के लिए स्वदेशीयों के लिए अनुकरणीय एवं अर्चनीय बन गया। गाँधीजी के असहयोग आन्दोलन को सफल बनाने के लिए इस देशभक्त ने भी बिहार में असहयोग आन्दोलन की अगुआई की और बाद में नमक सत्याग्रह आन्दोलन भी चलाया।
देश सेवा के साथ ही साथ राजेन्द्र बाबू मानव सेवा में भी अविराम लगे रहे और 1914 में बिहार एवं बंगाल में आई बाढ़ में उन्होने बढ़चढ़कर लोगों की सेवा की, उनके दुख-दर्द को बाँटा और एक सच्चे मनीषी की तरह लोगों के प्रणेता बने रहे। राजेंद्र बाबू का मानव-प्रेम, भोजपुरिया प्रेम का उदाहरण उस समय सामने आया जब 1934 में बिहार में आए भूकंप के समय वे कैद में थे पर जेल से छूटते ही जी-जान से भूकंप-पीड़ितों के लिए धन जुटाने में लग गए और उनकी मेहनत, सच्ची निष्ठा रंग लाई और वाइसराय द्वारा जुटाए हुए धन से भी अधिक इन्होनें जुटा दिया। अरे इतना ही नहीं माँ भारती का यह सच्चा लाल मानव सेवा का व्रत लिए आगे बढ़ता रहा और सिंधु एवं क्वेटा में आए भूकंप में भी भूकंप पीड़ितों की कर्मठता एवं लगन के साथ सेवा की एवं कई राहत-शिविरों का संचालन भी किया।
इस महान विभूति के कार्यों एवं समर्पण से प्रभावित होकर इन्हें कई सारे पदों पर भी सुशोभित किया गया। 1934 में इन्हे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के मुंबई अधिवेशन में अध्यक्ष चुना गया। इन्होंने दो बार इस पद को सुशोभित किया। भारतीय संविधान के निर्माण में भी इस महापुरुष का बहुत बड़ा योगदान है। उनकी विद्वता के आगे नतमस्तक नेताओं ने उन्हें संविधान सभा के अध्यक्ष पद के लिए भी चयनित किया। बाबा अंबेडकर को भारतीय संविधान के शिल्पकार के रूप में प्रतिस्थापित करने में इस महान विभूति का ही हाथ था क्योंकि यह महापुरुष बाबा अंबेडर के कानूनी विद्वता से परिचित था। स्वतंत्र भारत के पहले राष्ट्रपति के रूप में इसने कार्यभार संभाला और अपनी दूरदृष्टि एवं विद्वता से भारत के विकास-रथ को विकास मार्ग पर अग्रसर करने में सहायता की। यह महापुरुष सदा स्वतंत्र रूप से अपने पांडित्य एवं विवेक से कार्य करता रहा और कभी भी अपने संवैधानिक अधिकारों का हनन नहीं होने दिया।
इस महान विभूति में देश-प्रेम, परहितता इतना कूट-कूटकर भरी थी कि भारतीय संविधान के लागू होने के एक दिन पहले अपनी बहन भगवती देवी के स्वर्गवास होने के बावजूद ये मनीषी पहले देश के प्रति अपने कर्तव्यों को निभाया और उसके बाद अपनी बहन के अंतिम संस्कार में शामिल हुआ।
इस महापुरुष के चाहनेवालों में केवल भोजपुरिया ही नहीं अपितु पूरे भारतीय थे। इनकी लोकप्रियता लोगों के सिर चढ़कर बोलती थी। इसका ज्वलंत उदाहरण यह है कि पंडित नेहरू डा. राधाकृष्णन को राष्ट्रपति के रूप में देखना चाहते थे पर बाबू राजेंद्र प्रसाद के समर्थन में पूरे भारतीय समाज को देखकर वे चुप्पी साध लिए थे। जब 1957 में पुनः राष्ट्रपति के चयन की बात उठी तो चाचा नेहरू ने दक्षिण भारत के सभी मुख्यमंत्रियों को पत्र लिखकर अपनी यह मंशा जाहिर की कि इसबार कोई दक्षिण भारतीय को ही राष्ट्रपति बनाया जाए पर दक्षिण भारतीय मुख्यमंत्रियों ने यह कहते हुए इस बात को सिरे से खारिज कर दिया कि जबतक डा. राजेन्द्र प्रसाद हैं तबतक उनका ही राष्ट्रपति बने रहना ठीक है और इस प्रकार राजेन्दर बाबू को दुबारा राष्ट्रपति मनोनीत किया गया। 12 वर्षों तक राष्ट्रपति के पद को सुशोभित करने के बाद सन 1962 में उन्होंने अवकाश ले लिया। इस महापुरुष की सादगी, समर्पण, देश-प्रेम, मानव-प्रेम और प्रकांड विद्वता आज भी लोगों को अच्छे काम करने की प्रेरणा प्रदान करती है। इस महान भोजपुरिया को सर्वोच्च भारतीय नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न’ से भी सम्मानित किया गया।
इस महापुरुष ने 1946 में अपनी आत्मकथा लिखने के साथ ही साथ कई अन्य चर्चित एवं पठनीय पुस्तकों की रचना भी की जिसमें बापू के चरणों में, गाँधीजी की देन, भारतीय संस्कृति, सत्याग्रह एट चंपारण, महात्मा गाँधी और बिहार आदि विचारणीय हैं।
माँ भारती का यह अमर सेवक 28 फरवरी सन 1963 को राम, राम का जाप करते हुए अपने इहलौकिक नश्वर शरीर को त्यागकर सदा-सदा के लिए परम पिता परमेश्वर के घर का अनुगमन किया और अपने सेवा भाव में पले-बड़े भारतीय जनमानस को सदा अग्रसर होने के लिए प्रेरित कर गया।
आज कुछ भारतीय चिंतकों को बहुत ही अफसोस होता है कि इस महापुरुष के लिए आजतक भारत सरकार ने ना ही किसी दिवस की घोषणा की और ना ही इनके नाम से किसी बड़े कार्य की शिला ही रखी। अपने घर बिहार में भी अपनो के बीच माँ भारती के इस अमर पुत्र को उतना राजकीय सम्मान नहीं मिला जितना अन्य इनसे भी छोटे-छोटे राजनीतिज्ञों एवं नामचीन लोगों को।
खैर ऐसे महापुरषों को किसा सम्मान की आवश्यकता नहीं होती। ऐसे महापुरुष तो लोगों के दिल में विराजते हैं, सम्मान पाते हैं और जनमानस द्वारा जयकारे जाते हैं। हर भारतीय, हर भोजपुरिया आज गौरव महसूस करता है कि वह इतने बड़े महापुरुष की सन्तान है। वह आज ऐसी मिट्टी में खेल-कूद रहा है, ऐसी हवा में साँसे ले रहा है जिसमें पहले ही राजेन्द्र प्रसाद जैसी विभूतियाँ खेल-कूद चुकी हैं, साँसे ले चुकी हैं।
धन्य है वह भारत नगरी जहाँ ऐसे-ऐसे महापुरुषों का प्रादुर्भाव हुआ जिनकी कीर्ति आज भी पूरे विश्व को रोशन कर रही है। ऐसे महापुरुषों के कर्म हम भारतीयों को गौरवांवित करते हैं और हम शान से सीना तानकर कहते हैं कि हम भारतीय है। माँ भारती के इस अमर-पुत्र, भोजपुरियों के सरताज, प्रकांड विद्वान, सहृदय, भारतीयों द्वारा पूजित इस महापुरुष को मैं शत-शत नमन करता हूँ।
-प्रभाकर पाण्डेय

Views: 705

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on June 16, 2010 at 9:01am
प्रभाकर भईया बहुत ही बढ़िया लेख लिखे है, राजेंद्र बाबू के बारे मे बहुत सारी नई बातो की जानकारी हुई, बहुत बहुत धन्यवाद इस सुंदर और ससक्त अभिव्यक्ति के लिये,

प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on June 15, 2010 at 7:01pm
श्री प्रभाकर पाण्डेय जी, अपने बिलकुल सत्य कहा कि राजेन्द्र बाबू केवल भोजपुरिया समाज के ही नही बल्कि पूरे भारत वर्ष की शान हैं ! आज कल अपनी मिटटी और जड़ों से जुडे हुए नेतायों कि कमी बहुत महसूस की जा रही है ! इतनी महान विभूति के बारे में अपने बहुत ही श्रद्धा और गौरवमयी ढंग से लिखा है, जिसके लिए आप धन्यवाद के पात्र हैं !

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Rana Pratap Singh on June 14, 2010 at 10:06pm
bahut sundar... Bharat ke pratham rashtrapati Dr Rajendra Prasad ko shat shat naman.
Comment by Rash Bihari Ravi on June 14, 2010 at 9:22pm
धन्य है वह भारत नगरी जहाँ ऐसे-ऐसे महापुरुषों का प्रादुर्भाव हुआ जिनकी कीर्ति आज भी पूरे विश्व को रोशन कर रही है। ऐसे महापुरुषों के कर्म हम भारतीयों को गौरवांवित करते हैं और हम शान से सीना तानकर कहते हैं कि हम भारतीय है। माँ भारती के इस अमर-पुत्र, भोजपुरियों के सरताज, प्रकांड विद्वान, सहृदय, भारतीयों द्वारा पूजित इस महापुरुष को मैं शत-शत नमन करता हूँ।
bhaiya yetana badhia ki man karat ki ham tohke sat sat bar na karoro bar namaskar kari jai ho aap aaye bahar aai,
Comment by Kanchan Pandey on June 14, 2010 at 8:49pm
Bahut achhi jankaari hai, ees tarah key gyanvardhak blog ki OBO par aawashyakta hai,Thanks Prabhakar jee for your first blog at OBO,
Comment by satish mapatpuri on June 14, 2010 at 3:07pm
प्रभाकर जी, obo पर आपका स्वागत करते हुए आपके इस आलेख पर साधुवाद देता हूँ.
Comment by Admin on June 14, 2010 at 1:56pm
आदरणीय प्रभाकर पाण्डेय जी ,
सादर प्रणाम ,
सर्व प्रथम ओपन बुक्स ऑनलाइन पर आपके पहले ब्लॉग का दिल से स्वागत है, आपने अपने पहले ब्लॉग मे ही महापुरुष परम आदरणीय भारत के प्रथम राष्ट्रपति डाक्टर राजेंद्र प्रसाद जी के जीवन परिचय दिया, बहुत ही ज्ञानवर्धक यह लेख है, धन्य है यह भारत भूमि ,धन्य है बिहार की मिट्टी जिसने डाक्टर राजेंद्र प्रसाद जैसे विभूति और कोहिनूर को पैदा किया, सत सत नमन है बिहार की मिट्टी को और सत सत नमन है डाक्टर राजेंद्र प्रसाद को,
बहुत बहुत धन्यवाद है प्रभाकर पाण्डेय जी इस ज्ञानवर्धक लेख के लिये, आगे भी आप के ब्लॉग का सिद्दत से इन्तजार रहेगा,
आप का अपना ही
ADMIN
OBO

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
13 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
13 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
13 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
13 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
13 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
13 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
14 hours ago
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
16 hours ago
Shyam Narain Verma commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
16 hours ago
Sanjay Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दिनेश जी, बहुत धन्यवाद"
16 hours ago
Sanjay Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम जी, बहुत धन्यवाद"
16 hours ago
DINESH KUMAR VISHWAKARMA replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम जी सादर नमस्कार। हौसला बढ़ाने हेतु आपका बहुत बहुत शुक्रियः"
17 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service