For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

आलोचना के स्वर // आबिद अली मंसूरी!

कौन सुनता है

कौन सुनना चाहता है
किसे पसन्द है आलोचना अपनी
एक कड़वा सच
छिपा होता है
आलोचना के शब्दों में
जिसे
नहीं चहते हम
स्वीकार करना,
जानते हैं
अपने अन्दर फ़ैले
खरपतवारों को सभी
पर नहीं चाहते
उखाड़ना
उनकी जड़ों को,
कभी-कभी
अकारण ही
करना पड़ता है
सामना
आलोचनाओं के बबंडर का
यह मानसिकता
होती है
कुछ लोगों की
अच्छे को
बुरा कहने की,
भटक जाते हैं
उद्देश्य से अपने
और
टेक देते हैं घुटने
हम
उनके आगे
जैसा
कुछ लोग चाहते हैं,
कड़वे होते हैं
मिठास नहीं होती
इनमें
मिश्री सी
जीवन में निरंतर
आगे बढ़ने
और अच्छा बनने की
सीख देते हैं
हमें
कितने प्रेरक
और सार्थक होते हैं
आलोचना के स्वर !
.............. आबिद अली मंसूरी,
 
( मौलिक एवं अप्रकाशित )

Views: 1051

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Abid ali mansoori on April 16, 2018 at 9:18am
Aadarniye nadir Khan ji, bahut-bahut shukriya!!!!
Comment by Abid ali mansoori on December 10, 2015 at 12:54am

आदरणीय सौरभ जी ह्रदय से आभार आपका, शायद मुझे इससे आगे कुछ कहने की ज़रूरत नहीं है क्योंकि आपने अच्छे से समझाया है, आपके मार्गदर्शन के लिए भी ह्रदय से आभारी हूं, आशा है यह सहयोग हमेसःआ बनाए रखेंगे, विलम्ब के लिए क्षमाप्रार्थी हूं!

Comment by Abid ali mansoori on December 10, 2015 at 12:46am

आदरणीया नीता जी हार्दिक आभार आपका, विलम्ब के लिए क्षमाप्रार्थी हूं!

Comment by Abid ali mansoori on December 10, 2015 at 12:45am

आदरणीया कॉंंता जी हार्दिक आभार आपका, विलम्ब के लिए क्षमाप्रार्थी हूं!

Comment by kanta roy on December 4, 2015 at 5:37pm

जानते हैं
अपने अन्दर फ़ैले
खरपतबारों को सभी
पर नहीं चाहते
उखाड़ना
उनकी जड़ों को,---------बहुत ही गहरी और सच्ची बात कही है यहाँ आपने अपनी रचना के माध्यम से आदरणीय आबिद अली मंसूरी जी ,इस शानदार रचना के लिए बधाई आपको।

Comment by Nita Kasar on December 2, 2015 at 7:04pm
आलोचनाओं के संबंध में बहुत उम्दा रचना प्रस्तुत की है बधाई आपको आद० आबिद अली मंसूरी जी ।

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on November 17, 2015 at 10:45pm

इस रचना में आलोचना को किसी के किये या किसी के व्यक्तित्व के नीर-क्षीर करने का संदर्भ लिया गया प्रतीत होता है. अधिक ज़ोर उस विन्दु पर है जहाँ किसी के बारे में सुधारात्मक किन्तु तीक्ष्णता के साथ बातें कही जाती हैं. वस्तुतः आलोचना तीक्ष्णता के साथ कमियाँ उजागर मात्र नहीं होती बल्कि किसी की सापेक्ष विवेचना होती है जो सकारात्मक भी हो सकती है. परन्तु, यह शब्द आज इसी अर्थ के साथ प्रचलित हो गया है. एक तरह से आलोचक आलोचना के समय किसी के बारे में सही या सकारात्मक बातों के प्रति उतने उत्साही नहीं होते, अपितु, नकारात्मक बातों को उजागर करने के क्रम में इतने आग्रही हो जाते हैं कि व्यक्तित्व का सकारात्मक पहलू एक तरह से छुप जाता है. उसकी अपेक्षित चर्चा ही नहीं हो पाती. इस प्रस्तुति के संदर्भ में यही विन्दु हावी है. आज के संदर्भ में यह ग़लत भी नहीं है. 

रचना अच्छी हुई है लेकिन नयी कविता की प्रस्तुति का अर्थ यह नहीं होता कि शब्द प्रति शब्द पंक्तियाँ बदल दी जायें. पंक्तियों का अर्थ भाव अथवा कथ्य के आयाम में परिवर्तन हुआ करता है. वहीं भाव-समुच्चय एक साथ रखे जाते हैं.

फिर, भावों को शब्द-विन्यास के क्रम में प्रस्तुत करने का अभ्यास आवश्यक है.  

भाई आबिद अली मन्सूरीजी की रचना को पुनः प्रस्तुत करने का प्रयास कर रहा हूँ --

कौन सुनता है

कौन सुनना चाहता है
किसे पसन्द है आलोचना अपनी
एक कड़वा सच छिपा होता है आलोचना के शब्दों में
जिसे नहीं चहते हम स्वीकार करना,
 
जानते हैं अपने अन्दर फ़ैले खरपतवारों को सभी 
पर नहीं चाहते उखाड़ना उनकी जड़ों को,
कभी-कभी अकारण ही करना पड़ता है सामना
आलोचनाओं के बबंडर का
यह मानसिकता होती है कुछ लोगों की
अच्छे को बुरा कहने की,
भटक जाते हैं उद्देश्य से अपने
और टेक देते हैं घुटने हम / आलोचनाओं के डर से /
उनके आगे जैसा कुछ लोग चाहते हैं
 
कड़वे होते हैं 
मिठास नहीं होती इनमें मिश्री सी 
 
जीवन में निरंतर आगे बढ़ने
और अच्छा बनने की सीख देते हैं हमें
कितने प्रेरक और सार्थक होते हैं
आलोचना के स्वर !
 
Comment by vijay nikore on November 12, 2015 at 3:51pm

खूबसूरत रचना के लिए बधाई।

Comment by Abid ali mansoori on November 5, 2015 at 4:09pm

आदरणीय मनोज जी हार्दिक आभार आपका, शायद आपने रचना को ध्यान से नहीं पढ़ा, खैर.. आपने जो बातें अंत में कहीं हैं उनका भावार्थ आप रचना की अंतिम पंक्तियों में समझ सकते हैं, जहां आलोचना को आपके कहे अनुसार ही बतया गया है,जिन्हें स्वीकार कर हमें अपने अन्दर अच्छे परिवर्तन लाना चाहिए! हमारा समाज बहुत बढ़ा है और इस समाज में कुछ ऐसे लोग भी हैं जो आलोचना का हकदार होने के बाद भी अपनी आलोचना सुनना पसन्द या सच्चाई स्वीकार नहीं करते! कुछ लोग ऐसे भी हैं जो बेमतलब ही दूसरों की आलोचना करते हैं जिससे सभी का नहीं, कुछ लोगों का मनोवल तो टूट ही जाता है और वे अपने कर्म से भटक जाते हैं,जैसाकुछ लोग चाहते भी हैं! और कुछ लोग ऐसे भी हैं जो अपनी आलोचनाओं को पूरी ईमानदारी से स्वीकार भी करते हैं, और फिर अच्छा करने, अच्छा बनने का प्रयास भी करते हैं जो उनके लिए अक्सर हितकर होता है,एक बार पुनः आभार आपका आदरणीय मनोज जी!

Comment by मनोज अहसास on November 5, 2015 at 2:29pm
बहुत शुबकामनाये
इस रचना पर
बधाई
पर मैं ये नहीं समझ पाया के आलोचना को आपने इस रचना में किन अर्थों में लिया है
क्या आपने आलोचना को
निंदा करने अथवा केवल दोष बताने के सन्दर्भ में लिया है
जबकि आलोचना का अर्थ मैं तो निष्पक्ष विवेचन समझता रहा हूँ
आपसे तथा समस्त विद्वानों से मार्गदर्शन निवेदित है

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post कुंडलिया
"रजाई को सौड़ कहाँ, अर्थात, किस क्षेत्र में, बोला जाता है ? "
yesterday
सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post पूनम की रात (दोहा गज़ल )
"मार्गदर्शन के लिए हार्दिक आभार आदरणीय "
yesterday
सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post कुंडलिया
"बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय  सौड़ का अर्थ मुख्यतः रजाई लिया जाता है श्रीमान "
yesterday
सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post अस्थिपिंजर (लघुकविता)
"हृदयतल से आभार आदरणीय 🙏"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय सौरभ भाई , दिल  से से कही ग़ज़ल को आपने उतनी ही गहराई से समझ कर और अपना कर मेरी मेनहत सफल…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय सौरभ भाई , गज़ाल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका ह्रदय से आभार | दो शेरों का आपको…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"इस प्रस्तुति के अश’आर हमने बार-बार देखे और पढ़े. जो वाकई इस वक्त सोच के करीब लगे उन्हें रख रह…"
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय गिरिराज भाईजी, बहरे कामिल पर कोई कोशिश कठिन होती है. आपने जो कोशिश की है वह वस्तुतः श्लाघनीय…"
Wednesday
Aazi Tamaam replied to Ajay Tiwari's discussion मिर्ज़ा ग़ालिब द्वारा इस्तेमाल की गईं बह्रें और उनके उदहारण in the group ग़ज़ल की कक्षा
"बेहद खूबसूरत जानकारी साझा करने के लिए तहे दिल से शुक्रिया आदरणीय ग़ालिब साहब का लेखन मुझे बहुत पसंद…"
Tuesday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-177

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Tuesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post पूनम की रात (दोहा गज़ल )
"धरा चाँद गल मिल रहे, करते मन की बात।   ........   धरा चाँद जो मिल रहे, करते मन…"
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post कुंडलिया
"आम तौर पर भाषाओं में शब्दों का आदान-प्रदान एक सतत चलने वाली प्रक्रिया है। कुण्डलिया छंद में…"
Monday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service