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न जाने क्यों भला फिर आज उनकी याद आयी है|

अरकान- 1222     1222       1222        1222 

न जाने क्यों भला फिर आज उनकी याद आयी है|
न मिलने की कसम जिनसे हमेशा मैंने खाई है|

मुरव्वत से हैं बेगाने हया तक बेच खाई है,
छूटे गर पिंड ऐसों से इसी में ही भलाई है|

तुम्हारी याद हावी है मेरे दिल पर उसी दिन से,
हुई खुशियाँ मेरी रुखसत दुखों से ही सगाई है|

समझकर देवता पत्थर को घर में ला बिठाया है,
इमारत दिल की यूँ अफसोस क्यों मैंने सजाई है|

जो मारा पीठ पर खंज़र समझ में आ गया फ़ौरन,
मेरे अपनों ने मुझसे यूँ शनासाई निभाई है|

हज़ारों पाप करके भी नहाते हैं जो गंगा में,
खुदा जाने ज़माने की ए कैसी पारसाई है|

लगा के दिल को पत्थर से मैं पहुंचा मोड़ पर ऐसे,
कि आगे है कुआँ मेरे औ पीछे मेरे खाई है|

इबज में प्यार के मुझसे वो मेरी जान मांगे है,
बचा ले ए खुदा मुझको दुहाई है दुहाई है|

.

मौलिक व् अप्रकाशित 

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Comment by मिथिलेश वामनकर on November 10, 2015 at 1:54pm

आदरणीय ब्रिजराज जी बढ़िया ग़ज़ल हुई है. हार्दिक बधाई 

कृपया ध्यान दे...

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