अरकान - 2 2 2 2 2 2 2 2 2 2 2 2 2 2 2
तेरे बिन घर वन लगता है बाकी सब कुछ अच्छा है|
तुझ बिन बेटे जी डरता है बाकी सब कुछ अच्छा है|
माँ तेरी बीमार पड़ी है गुमसुम बहना भी रहती,
भैया का भी हाल बुरा है बाकी सब कुछ अच्छा है|
दादी तेरी बुढिया हैं पर चूल्हा-चौका हैं करती,
कोई न उनका दुख हरता है बाकी सब कुछ अच्छा है|
दादा जी पूछा करते हैं अक्सर तेरे बारे में,
आँख से उनको कम दिखता है बाकी सब कुछ अच्छा है|
अन्न न उपजा खेतों में और मालगुजारी है बाक़ी,
गैया घर में भूखी बैठी बाकी सब कुछ अच्छा है|
तू बैठा परदेस यहाँ पर बहना शादी जोग हुई
सोच के मेरा जी डरता है बाकी सब कुछ अच्छा है|
समय मिले तो आना बेटा मुनिया को भी साथ लिए,
मिलने को बस जी करता है बाकी सब कुछ अच्छा है|
मत करना तू चिंता घर की खुश रहना तू लाल वहाँ,
और मैं ज्यादा क्या कह सकता बाकी सब कुछ अच्छा है|
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
गैया घर में भूखी बैठी बाकी सब कुछ अच्छा है|
और मैं ज्यादा क्या कह सकता बाकी सब कुछ अच्छा है| ---------इनका काफिया देख लीजिये बाकी सब कुछ अच्छा हैI .
ग़ज़ल पर आपकी कोशिश के लिए हार्दिक बधाई, बैजनथ शर्मा मिण्टू जी. आप ग़ज़ल के मूलभूत नियमों को भी पढ़ते चलें. बहुत लाभ होगा. कई महत्वपूर्ण आलेख इस मंच पर मिल जायेंगे.
आपकी इस ग़ज़ल में क़ाफ़िया सही नहीं हो पाया है. इसे देख लें.
शुभेच्छाएँ
आदरणीय भंडारी साहेब......... शुक्रिया|
आदरणीय मिथलेश वामनकर जी....... शुक्रिया|
आदरणीय पंकज कुमार जी ....... शुक्रिया|
आदरणीय बैज नाथ भाई , बहुत अच्छी और मार्मिक ग़ज़ल हुई है , दिली बधाइयाँ कुबूल करें ।
आदरणीय बैजनाथ जी शानदार मुसल्सल ग़ज़ल हुई है. बह्र को भी खूब निभाया है आपने. ग़ज़ल गुनगुनाकर आनंद आ गया. हर एक अशआर प्रभावित करता है इस प्रस्तुति पर बहुत बधाई.
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