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दिन सुनहरा हो गया- बैजनाथ शर्मा 'मिंटू'

अरकान -   2122   2122   2122   212

 

आप आये और मेरा दिन सुनहरा हो गया|

आपको देखा तो मेरा फूल चेहरा हो गया|

  

कुछ समय पहले तलक तो थी हरी यें वादियाँ ,

आपके जाते ही तो हर  सिम्त सहरा हो गया|

क़त्ल का ए सिलसिला क्यों और आगे बढ़ गया,

जब से मेरे गाँव में कुछ सख्त पहरा हो गया |

 

लाख चीखो और चिल्लाओ सुनेगा कौन अब,

हाय पत्थर दिल ज़माना आज बहरा हो गया|

 

जख्म तो बस जख्म था जो भर भी सकता था मगर ,

बेरुखी से पर तुम्हारी  और  गहरा हो गया |

मौलिक व अप्रकाशित 

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Comment by मनोज अहसास on November 25, 2015 at 7:14am
नमस्कार सर
अच्छी ग़ज़ल हुई है
बहरा वाले शेर में कुछ लय बाधित लग रही है
देख ले
मंच से भी निर्देशन का निवेदन है
सादर

कृपया ध्यान दे...

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