परीक्षाएं सिर पर होने से उसका अधिक से अधिक समय कमरे में ही बीतता था I आज फिर भीतर से ही आवाज़ आई थी I ' मॉम आज मटर की दाल बनाओ न !! '
' अच्छा ' कह मैं मुस्कुराई थी I संभवतः उसने सुन लिया था की मैंने आज सब्जी वाले से मटर ख़रीदे हैं I सोचा ,जा कर पूछ लूँ ! ' और कुछ भी चाहिए !!' भीतर गयी तो कमरे में जो नजारा दिखा ,जेहन में एक ही बात आई ' उफ़ ! ये लड़की भी न !! '
मीना पाण्डेय
मौलिक व् अप्रकाशित
Comment
हार्दिक आभार आदरणीय राजेश कुमारी जी मई आपकी बात का संज्ञान अवश्य लुंगी I धन्यवाद सहित
हार्दिक आभार आदरणीय pratibha pande जी
आदरणीय कांता जी लघुकथा की बारीकियों को इस प्रकार समझने के उपक्रम से अभिभूत हूँहार्दिक आभार इसके लिए मई आपकी बात का संज्ञान अवश्य लुंगी धन्यवाद सहित I
बहुत अच्छा लिखा है आपने मीना जी ,मैं आ० कांता जी की बात से भी सहमत हूँ कहीं न कहीं उस पञ्च लाइन की कमी महसूस हुई जो लघु कथा को विशेष बनाती है |फिर भी आपको इस सुन्दर रचना के लिए बहुत-बहुत बधाई|
बाहर निकल कर ही बच्चों को माँ और उसके साथ की कीमत पता पड़ती है ,बहुत अच्छी कथा सधे कथ्य और शिल्प के साथ ,हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीया मीना जी
आपकी लेखन बहुत अच्छी है ,भावों को पिरोना भी खूब जानती है ,इसलिए पहले बधाई प्रेषित करती हूँ। बाकी बात अब विधा सम्मत करे तो यहां आपका " मैं " भाव ने , ये मात्र संस्मरण यानी आपकी कथा बन कर रह गयी। लघुकथा सन्देश स्थापित करते हुए जैसे एकदम से चूक गयी ,ऐसा मेरा मानना है। सादर
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