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मन्नत - ( लघुकथा ) –

गोपाल की बीवी राधा सुबह से रट लगाये थी ,” शाम को  जल्दी दुकान बंद कर के आ जाना!संकट मोचन चलेंगे!आपको जब पीलिया हुआ था तब मैंने मन्नत बोली थी कि आपके स्वस्थ होने पर सात कन्याओं को जिमाऊंगी, पर अभी हाथ थोडा तंग है,बीमारी में ज़्यादा खर्चा हो गया, फ़िर कभी देखेंगे! अभी तो एक सौ एक रुपये का प्रसाद चढाकर काम चला लेते हैं”!

गोपाल के आते ही दौनों स्कूटर पर मंदिर पहुंच गये!

दर्शन कर बाहर निकले तो राधा की नयी चप्पल गायब और गोपाल की ज़ेब से पर्स  नदारद ! गनीमत थी कि राधा के पर्स में हज़ार दो हज़ार पडे थे !अब नंगे पैर कैसे जायेंगे, इसी हडबडी में,सामने एक नयी चप्पल दिखी तो राधा ने पहन ली!जल्दी से बाहर निकल कर जैसे ही स्कूटर में किक मारी, पीछे से दौडकर एक सिपाही ने रोक लिया!

"क्या हुआ दीवान जी"!

"अभी बताता हूं, एक मिनट रुकिये तो"!

इतनी देर में पीछे पीछे एक दंपत्ति भी आगया!

"देखिये मैडम,क्या यही हैं आपकी चप्पल"!

"जी हां, यही हैं"!

"चलिये थाने, बहुत दिन से नयी नयी चप्पल चोरी हो रही थी,आज पकड में आये हैं चप्पल चोर"!

राधा ने चप्पल उतार कर सफ़ाई दी,” मेरी भी ऐसी ही थी इसलिये गलती से पहन ली”!

वह परिवार तो चप्पल ले कर चला गया, मगर सिपाही तो राधा को थाने ले जाने पर ही अडा हुआ था!

एक दो समझदार लोग बीच में पडे तो हज़ार रुपये में मामला रफ़ा दफ़ा हुआ!

 

 मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by TEJ VEER SINGH on January 29, 2016 at 8:44am

हार्दिक आभार आदरणीय वीर मेहता जी!आपने लघुकथा को समय दिया!टिप्पणी की!बहुत अच्छा लगा!मेरे लिये तो आप भी गुणी जनों की श्रेणी में ही आते हो!भविष्य में आपके सुझाव पर मनन करूंगा एवम उचित ध्यान रखूंगा!मार्ग दर्शन हेतु पुनः आभार!

Comment by VIRENDER VEER MEHTA on January 28, 2016 at 9:46pm
अंधविश्वास और धार्मिक जगहों की एक झलक दिखाती सुंदर रचना लिखी आपने आदरणीय तेजवीर सिंह जी। सादर बधाई स्वीकारे।
लेकिन मेरे विचार से ये एक लघुकथा की अपेक्षा एक घटना वर्त्तान्त अधिक लग रहा है। बाकी इससे अधिक स्पष्टीकरण तो गुणीजन साथी ही दे सकेंगे। सादर।

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