कल का छोकरा – ( लघुकथा ) -
"दद्दू , जय हिन्द"!
फ़िर उसने दद्दू के पैर छू लिये!दद्दू राम सिंह ने अपना चश्मा उतारा ,साफ़ किया,फ़िर पहना!
"कौन है भाई,पहचान नहीं पाये"!
"दद्दू, हम अमर सिंह के बडे बेटे सूरज हैं"!
"ये फ़ौज़ी बर्दी किसकी पहन ली"!
"यह अपनी ही है दद्दू"!
"क्यों मज़ाक करते हो बेटा,फ़ौज़ की बर्दी इतनी आसानी से नहीं मिलती!इस गॉव में अभी तक केवल हम ही हैं ,रिटायर्ड सूबेदार मेजर राम सिंह, जो ये सम्मान पाये हैं"!
"दद्दू,आपको याद है,जब हमने दसवीं पास की थी तो आपके पास आये थे और पूछा था कि दद्दू कोई रास्ता बताओ एन ॰डी॰ ए॰ के माध्यम से फ़ौज़ में जाने का!आपने कहा था कि तुम्हारे जैसे डेढ पसली के छोरों को भर्ती दफ़्तर के गेट से ही भगा दैंगे!तभी हमने आपके चरण स्पर्श करके कसम खाई थी कि दद्दू अब आपको फ़ौज़ी बर्दी पहन कर ही शक्ल दिखायेंगे"!
"हमको तुम्हारी बात पर अभी भी विश्वास नहीं हो रहा,चलो अपना आई॰ डी॰ कार्ड दिखाओ"!
"ये लीजिये दद्दू"!
दद्दू आई॰ डी॰ कार्ड देखते ही खडे हो गये और सैलूट के लिये हाथ उठाने ही वाले थे कि मेजर सूरज प्रताप सिंह ने उनका हाथ रोक लिया!
"दद्दू आपके ये हाथ हमको आशीर्वाद देने के लिये हैं"!
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
हार्दिक आभार आदरणीय नीता कसार जी!
हार्दिक आभार आदरणीय अर्चना त्रिपाठी जी!
हार्दिक आभार आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी!
आदरणीय तेजवीर सिंह जी, बहुत बढ़िया प्रस्तुति. हार्दिक बधाई
हार्दिक आभार आदरणीय प्रतिभा पांडे जी!
सुन्दर सशक्त कथा ,सार्थक सन्देश देती हुई ,हार्दिक बधाई प्रेषित है आदरणीय तेजवीर जी
हार्दिक आभार आदरणीय सौरभ पांडे जी!आपने लघुकथा,बोध कथा एवम प्रेरक कथा के विषय में इतनी विस्तृत जानकारी दी!आदरणीय योगराज प्रभकर जी तो इस क्षेत्र और विधा के अथाह सागर हैं!हम जो कुछ भी आजतक सीख पाये हैं सारा श्रेय उन्हीं को जाता है!उनके सानिध्य में आने के बाद ही हम इस विधा से अवगत हुए हैं!श्री योगराज प्रभाकर जी का लघुकथा क्षेत्र में नवांकुरों के लिये किया गया योगदान निःसंदेह सराहनीय और प्रशंसनीय है!इसके साथ ही आप जैसे गुणी लोगों से भी बहुत कुछ सीखने को मिला है और मिलता रहेगा, यह मेरी विशेष अभिलाषा और विनती है!सादर!
हार्दिक आभार आदरणीय अमित त्रिपाठी आज़ाद जी!
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