चौकीदारी - ( लघुकथा ) –
"तिवारी जी,सुना है आप के तो दौनों बेटे बहुत बडे गज़टैड अफ़सर हैं!आप कैसे आ फ़ंसे यहां बृद्धाश्रम में"!
"सुनील जी, मैं तो यहां स्वेच्छा से आया हूं, बच्चे तो बहुत ज़िद करते हैं अपने साथ रखने की"!
"क्यों मज़ाक करते हो तिवारी जी,दिल बहलाने को सब यही कहते हैं, पर कौन अपना घर परिवार छोड कर यहां आता है"!
"यह मज़ाक नहीं,हक़ीक़त है"!
"फ़िर इसके पीछे कोई विशेष कारण रहा होगा"!
"ठीक सोचा आपने"!
"अगर ऐतराज़ ना हो तो वह कारण भी बता दीजिये"!
"सुनील जी,मैंने दौनों बेटों के यहां रह कर देखा!दौनों पति पत्नी नौकरी करते हैं! दौनों बेटों के एक एक बच्चा है जो हॉस्टल में डाल रखा है!दिन भर घर पर मैं अकेला!एक मिनट को आराम नहीं मिलता!सुबह से शाम तक ! कभी काम वाली बाई,कभी कोरिअर वाला,कभी कचरे वाला,कभी गैस वाला,कभी पोस्ट्मैन,कभी दूधवाला,सब्ज़ीवाला,कभी चंदा मांगने वाले, बीसियों कंपनियों के सेल्स मैन, भिखारी अलग तंग करते हैं ! दिन भर फ़ोन बजता है, उसको भी सुनो ! इसके अलावा जान का खतरा , कोई भी अकेला देख गला दबा जाय! एक मिनट को सुक़ून नहीं"!
"समझ गया तिवारी जी, दो वक़्त की रोटी में दिन भर की चौकीदारी"!
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
हार्दिक आभार आदरणीय लक्ष्मण धामी जी!
हार्दिक आभार आदरणीय मुज़फ़्फ़र इक़बाल सिद्दिक़ी जी!
हार्दिक आभार आदरणीय प्रतिभा पांडे जी!
आ0 भाई तेजवीर जी अच्छी लघुकथा हुई है । बहुत बहुत बधाई ।
बुज़र्गों के प्रति ये व्यवहार आधुनिक समाज में आम हो गया है अच्छा विषय उठाते हुए कथा लिखी है आपने .मेरी बधाई स्वीकार करें
हार्दिक आभार आदरणीय जानकी वाही जी!
हार्दिक आभार आदरणीय शेख उस्मानी जी!
हार्दिक आभार आदरणीया राहिला जी!
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