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राज़ नवादवी: एक अपरिचित कवि की कृतियाँ- ४५ (हाँ, कुछ महीनों से घर बैठा हूँ)

हाँ, कुछ महीनों से घर बैठा हूँ

और इसलिए 
आजकल कविता ही लिखता हूँ
मगर तुम तो जानती हो 
कविता लिखने से काम तो नहीं चलता
बाजारों में कड़कते नोट चलते हैं 
और खनकते सिक्के 
रोज़मर्रा की ज़रूरतों के लिए 
शायर का नाम तो नहीं चलता

हाँ, वाहवाहियाँ मिलती हैं
और शाबाशियाँ भी खूब
इरशाद इरशाद कहके चिल्लाते हैं 
और देते है तालियाँ भी खूब
लाइक्स भी मिलते हैं और अलग-अलग कॉमेंट्स भी 
हाथ भी मिलाते हैं और देते हैं कॉम्प्लीमेंट्स भी 
मगर इन सब से परे 
घर में रोटी और दाल के लिए 
बच्चों की फीस और 
कर्जदारों के माल के लिए 
दीवाली के दिये और होली के गुलाल के लिए
पेट के सुकून और चेहरे के जलाल के लिए 
ऐ मेरी जाँ, मेरा एहतिराम तो नहीं चलता

हाँ, कुछ महीनों से घर बैठा हूँ
और इसलिए 
आजकल कविता ही लिखता हूँ
मगर तुम तो जानती हो 
कविता लिखने से काम तो नहीं चलता
बाजारों में कड़कते नोट चलते हैं 
और खनकते सिक्के 
रोज़मर्रा की ज़रूरतों के लिए 
शायर का नाम तो नहीं चलता

~ राज़ नवादवी

(मौलिक और अप्रकाशित)

जलाल - तेज; एहतिराम- इज्ज़त, आदर

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