रुख्सत/विदाई/ Departure
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साथ रहते हैं मेरे गम मैं जहां जाता हूँ
अब दरीचे पे ही रहता हूँ कहाँ जाता हूँ
हाय रे ये ज़िल्लतें जीने नहीं देतीं मुझे
मैं ज़मीं को छोड़कर अब आसमाँ जाता हूँ
अलविदा ऐ दोस्तोअहबाब हैं जिनके करम
ऐ मेरे प्यारे वतन हिन्दोस्ताँ जाता हूँ
दुःख न करना मेरा कोई पैकरेअल्ताफ़ में
मैं फ़लक के पार सू-ए-गुलसिताँ जाता हूँ
कुछ अधूरे ख़्वाब हैं और कुछ अधूरी दास्ताँ
बनके अपनी हस्रतों का कारवाँ जाता हूँ
सोज़ेदिल की शिद्दतें कम तो नहीं होंगी मगर
साँस की मजबूरियाँ हैं मेरी जाँ जाता हूँ
इख्तितामेगर्दिशेअन्फ़ास के आख़िर पहर
जिस जगह जाते हैं सब मैं भी वहां जाता हूँ
~ राज़ नवादवी
२७/०२/०७
दरीचा- खिड़की; ज़िल्लतें- परेशानियाँ; दोस्तोअहबाब- मित्रगण; करम- कृपा; पैकरेअल्ताफ़ में- आनंद के शरीर में; फ़लक- आसमान, क्षितिज; सू-ए-गुलसिताँ- फूलों के उपवन की तरफ; हस्रतें- अपूर्ण इच्छाएँ; सोज़ेदिल की शिद्दतें- दग्ध हृदय की तीव्रता; इख्तितामेगर्दिशेअन्फ़ास- साँसों के चक्र की समाप्ति पर
'मेरी मौलिक एवं अप्रकाशित रचना'
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