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गीत- ये है पुलिस की नौकरी,

२२१२ २२१२ २२१२ २२१२

ये है पुलिस की नौकरी, ये है पुलिस की नौकरी ।
कानून की ये टोकरी, ये है पुलिस की नौकरी ।

मुजरिम को पकडे तो कहे कुछ लोग अत्याचार है।
गर चुप रहे तो कहते है करती पुलिस व्यापार है।
जब मस्तियों में गाँव हो या नींद में होता शहर।
ऐ दोस्तो वे हम ही है जो जागते आठों पहर।
सोने का या फिर खाने का यां वक्त कुछ निश्चित नहीं।
हो जुर्म कितना भी मगर हम है तो तुम चिंतित नहीं
फिर भी हमें है लाख तानें और हजारों बात है।
हर फर्ज पूरा कर रहे फिर भी हमीं बदज़ात है।
ये है पुलिस की नौकरी...........................

कुछ लोग कहते है मजे में जी रहे हम लोग है।
वे बेखबर क्या जानते दुनिया में क्या क्या रोग है।
हाँ मानता हूँ नीच कुछ तो है छुपे खाकी में भी।
पर क्या करें जो हैं, कहीं भी हो, रहेगा नीच ही।
बदनाम करते है हमें ईर्ष्या में कुछ अखबार है।
हम फर्ज के खातिर कई सौ खो चुके परिवार है।
ये नौकरी कम धर्म ज्यादा है हमारे वास्ते।
आसां नहीं इतने भी 'राहुल' इस सफर के रास्ते।
ये है पुलिस की नौकरी...............

मौलिक व अप्रकाशित ।

Views: 401

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Comment by Rahul Dangi Panchal on March 7, 2016 at 11:30am
आदरणीय मनोज जी शुक्रिया
Comment by मनोज अहसास on March 7, 2016 at 11:03am
बहुत खूब
पुलिस की नौकरी की जटिलता का अच्छा चित्रण
सादर

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