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ग़ज़ल-आह उफ कर ले रू ब रू न आए।

२१२२ १२१२ २२

क्यूं मुझे मौत की ये बू न आये।
तेरी याद आए और तू न आये।

जख्म दर जख्म चींख,दर्द,आह,उफ।
हाल-ए-दिल,शे'र हू-ब-हू न आये।

रोज देखे किसी को छुप के हम।
आह उफ कर ले रू ब रू न आए।

रोज आए नजर से लब तक हम।
पर लबों तक ये आरजू न आये।

वो ग़ज़ल क्या ग़ज़ल जिसे सुनकर।
दर्द की आँख में लहू न आये।

होंठ पर फूल और दिल काला।
मुझको ये इल्मे गुफ्तगू न आये।

मौलिक व अप्रकाशित ।

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Comment by Rahul Dangi Panchal on March 16, 2016 at 3:28pm
आदरणीय समर साहब बहुत बहुत शुक्रिया
Comment by Samar kabeer on March 16, 2016 at 2:53pm
जनाब राहुल डांगी जी,आदाब,मेरी जानकारी के अनुसार आपकी रदीफ़ बिल्कुल सही है,"न" शब्द के बारे में मैं पहले भी बता चुका हूँ कि ये उर्दू शायरी में पूरी तरह जाइज़ है,बड़े बड़े शाइरों के यहाँ इसका इस्तेमाल मिलता है,मिसाल के तौर पर पहले भी एक शैर पेश किया था उसी को आज दोहराता हूँ जिस में दो जगह एक ही मिसरे में इसका इस्तेमाल किया गया है :-

"न हम समझे न आप आऐ कहीं से
पसीना पोछिये अपनी जबीं से"

ये मतला 'दाग़' घराने के उस्ताद शाइर महशर इनायती का है और इस तरह की बहुत सी मिसालें मिल सकती हैं ,उम्मीद है आप संतुष्ट हो गए होंगे ।
Comment by Rahul Dangi Panchal on March 16, 2016 at 10:13am
ना शब्द
Comment by Rahul Dangi Panchal on March 16, 2016 at 10:12am
आदरणीय समर साहब आपसे और अन्य गुनीजनों से विनती है मेरी यह उलझन दूर करें।
किसी शायर ने मुझे बताया कि मेरा रदीफ " न आये" गलत है उन्होंनें कहा है कि यहाँ अलिफ वस्ल जायज नहीं है क्यूं कि "न आये" का "नाये" हो जाता और ग़ज़ल में न शब्द मान्य नहीं है
Comment by Rahul Dangi Panchal on March 16, 2016 at 10:08am
आदरणीय रामबली गुप्ता जी आभार
Comment by Rahul Dangi Panchal on March 16, 2016 at 10:08am
आदरणीय Ravi Shukla धन्यवाद
Comment by Rahul Dangi Panchal on March 16, 2016 at 10:07am
आदरणीय Samar kabeer साहब जी आपनी टिप्पणी पाकर रचना धन्य हुई शुक्रिया
Comment by Rahul Dangi Panchal on March 16, 2016 at 10:06am
आदरणीय laxman dhami जी शुक्रिया
Comment by Rahul Dangi Panchal on March 16, 2016 at 10:06am
आदरणीय narendrasinh chauhan जी शुक्रिया
Comment by रामबली गुप्ता on March 15, 2016 at 7:16pm
बेहतरीन ग़ज़ल के लिए बहुत बहुत बधाई आ.

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