For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

जोंक (लघुकथा )राहिला

"हजूर,मांई बाप! कुछ रूपया मिल जाता तो बड़ी मेहरबानी हो जाती।"
"कितने चाहिये?"आवाज में दबंगी की खनक थी ।
"यात्रा लाक(लायक)हजूर!बस दो हजार।"
"अच्छा...चैत काटने जा रहे हो।"
"हओ मालिक! "
"हूँsss..कोई गारंटी या कुछ गिरवी रखने लाये हो?"जोंक को जैसे शिकार मिला ।
"काहे मजाक करते हो सरकार!हम गरीबों के पास क्या धरा?"
"देखो भई!मैं लेनदेन का काम कच्चा करता ही नहीं ।बिना कुछ गिरवी रखे एक दमड़ी नहीं दूंगा।"शब्दों को चबाते हुये वे कुछ रूके,फिर पुनः बोले-वैसे...,एक चींज है तुम्हारे पास.., अगर तुम चाहो तो...,फिर जब चाहे तब पैसा दे देना कोई जल्दी नहीं, और ना के बराबर ब्याज लूंगा।मंजूर हो तो बोलूं!"
उनकी बात सुन हैरान, परेशान सा मजदूर किसान असमंजस में पड़ गया और ख्यालों के घोड़े जवान बेटे से जवान बेटी तक दौड़ गये।हलक सूखा सा मालूम हुआ। उसे सोच में डूबा देख, वो उसकी मनोस्थिति भांप गये।
"अरे इतना भी क्या सोच रहे हो?पूर्वजों के जमाने लद गये । अब तो कागजों का लेनदेन भर रह गया है।ये रहे तुम्हारे दो हजार रूपये । वे मेज पर टांगे और रूपये रख कर इत्मेनान से बोले।"
"रामदई मालिक! मेरे पास गिरवी रखने लाक कैसेई कागज नहीं है।"वो हाथ जोड़ कर बोला।
"है ना..! वो तेरा बी.पी.एल.कार्ड।"
बी.पी. एल.कार्ड(गरीबी रेखा से नीचे के लोगों को मिलने वाला राशन कार्ड, जिसके अंतर्गत काफी किफायती दामों पर गेहूं, चावल, शक्कर और मिट्टी का तेल आदि मिलता है)
मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 1071

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Rahila on March 28, 2016 at 2:03pm
आद. अमोद जी!बहुत आभार आपका,आपने रचना को अपना बहुमूल्य समय दिया ।और इतनी सुन्दर टिप्पणी से नवाजा । बहुत शुक्रिया । सादर
Comment by Rahila on March 28, 2016 at 1:55pm
आद. कांता दी! बहुत इंतेजार के बाद आपकी इतनी सुन्दर टिप्पणी पाकर मेरी प्रसन्नता का अनुमान लगाना मुश्किल है।बहुत, बहुत आभार, बहुत शुक्रिया ।सादर नमन
Comment by amod shrivastav (bindouri) on March 28, 2016 at 1:19pm
आ राहिला जी आज कई बर्षो से हमारे यहाँ सूखा और अभी असमय बारिश में हूबहू माहौल तैयार किया है । जैसा की आप ने कथा में दर्शाया है। मैं पढने के बाद आप की कथा की सुंदरता के भावों में लिपट गया । कमाल का सृजन बहुत बहुत बधाई नमन
Comment by kanta roy on March 28, 2016 at 12:35pm

वाह  !  क्या  खूब  चित्रण  हुआ  है  विषम  परिस्थिति  का  यहाँ  !

मनःस्थिति  की  ऐसी  गुत्थम -गूँथ  में  भावों  की  सम्प्रेश्नियता  तो  देखते  ही  बनती  है   .

चकित  करती  हुई  पंच  कथा  के  सौन्दर्य  को  द्विगुणित  कर  रही  है  .

इस  अद्भुत  लघुकथा  के  सृजन  के  लिए  ह्रदय  से  बधाई  प्रेषित  करती  हूँ  आपको  आदरणीया  राहिला  जी  

Comment by Rahila on March 23, 2016 at 9:05pm
बहुत -बहुत शुक्रिया आदरणीय पाण्डे सर जी! मुझे तो इस बात की बेहद प्रसन्नता हुई कि आपने मेरी रचना को अपना बहुमूल्य समय दिया।बहुत आभार ।सादर
Comment by Shubhranshu Pandey on March 23, 2016 at 7:45pm

आदरणीया राहिला जी, 

सुन्दर कथा

Comment by Rahila on March 23, 2016 at 6:15pm
आद. सिद्दिकी साहब! आपने रचना को पसंद किया, तारीफ़ से नवाजा मेरा तो लेखन ही सार्थक हुआ! बहुत शुक्रिया ।
Comment by MUZAFFAR IQBAL SIDDIQUI on March 23, 2016 at 6:09pm

राहिला जी ,बहुत खूब ,,,,,,,,,,,किसान और साहूकार के मध्य चलने वाला वार्तालाप ,कथा पढ़ते समय ऐसा लगा जैसे अपने सामने की घटना हो। इतने सजीव चित्रण के लिए आपको  बहुत बहुत बधाई। 

Comment by Rahila on March 23, 2016 at 11:22am
बहुत शुक्रिया आदरणीय परवेज खान साहब!आपने समय निकालकर रचना का गहन अवलोकन तो किया ही साथ में अपनी टिप्पणी से मेरी हौसला अफज़ाई भी की । सादर आभार
Comment by Rahila on March 23, 2016 at 11:02am
आद.सुशील सर जी! आपको रचना पसंद आई मेरा लेखन सार्थक हुआ। बहुत -बहुत आभार समय निकालकर रचना की समीक्षा करने के लिये सादर।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"रोला छंद . . . . हृदय न माने बात, कभी वो काम न करना ।सदा सत्य के साथ , राह  पर …"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service