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दोहा छंद......ग्यारह मनके

भले भलाई ही करें, बुरे बुने नित जाल.

भले हुए यश-चांदनी, बुरे क्रूर-तम-काल.१

सत्य-अहिंसा-प्रेम रस, सदगुरु की पहचान.

रखे मुक्त हर दोष से, जैसे कमल-कमान.२

सूरज की किरनें चली, सत्य ज्ञान के पार.

मिली चांदनी रात मेंं, क्षुद्र सितारे वार.३

पंचतत्व की देह यह, राम-कृष्ण की शान.

पांच इंद्रियों से करें, सत्यम नित्य बखान.४ 

धर्म स्वार्थ से रख परे, करते जब परमार्थ.

सूर्य चंद्र नभ जल पवन, खड़े रहें सहतार्थ.५

मिट्टी चढ़ कर चाक पर, कहे  पुकार - पुकार.

धरा-गगन-तन-कुम्भ में, भरें प्रेम रसधार.६

मिट्टी यश धन प्रेम की, मस्तक ब्रह्म समान.

शिवा शक्ति वर कामनी, करे प्रकाशित प्राण.७

सोना- चांदी- रत्न से, बढ़े  प्रीति  अति  ढीठ.

करें सत्य सम्भाव्य को, दफ्न बांध कर गींठ.८

भ्रष्ट नीति व्यवहार को, कभी न रखिए साथ.

जीवन  में  कटुता  भरें,  रिश्ते  करें  अनाथ.९

बड़ी कुटिल हैं इंद्रियां, करके तन अभिशप्त.

अंत उसी को खा गयीं, फिर भी हुईं न तृप्त.१०

निर्बल के प्रति नेह रख, बने सहायक नेक.

नित्य प्रेम सम्मान में, उनका हो अभिषेक.११

मौलिक व अप्रकाशित

 

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Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on April 14, 2016 at 6:00pm

सच ही कहा आपने, आ० सतविंद्र भाई जी. आपका बहुत-बहुत हार्दिक आभार. सादर

Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on April 14, 2016 at 3:50pm
ग्यारह मनके जो रचे,देते हैं सन्देश
इनको मन में धार लें,मिट जाए अंदेश।।
Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on April 14, 2016 at 12:08pm

आ० नरेंद्र भाईजी, प्रणाम! उत्साहवर्धन एवं बधाई के लिये आपका तहेदिल से बहुत-बहुत शुक्रिया व आभार, सादर

Comment by narendrasinh chauhan on April 11, 2016 at 7:48pm
खूब सुन्दर रचना

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