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मैं तो भुला चुका था,मगर याद आ गया (ग़ज़ल)

22 1212 1122 1212

मैं तो भुला चुका था,मगर याद आ गया
आखिर में ऐ ख़ुदा,तेरा दर याद आ गया

दुनिया की ख़ाक छान के जब ठोकरें मिलीं
जो छोड़ के गया था,वो घर याद आ गया

जब फूल हर डगर पे ही मुझको बिछे मिले
काँटों पे जो किया,वो सफ़र याद आ गया

पतझड़ के रुत में भी था हरा एक वो दरख़्त
किसकी दुआओं का था असर, याद आ गया

पल-भर की बेखुदी ने सफीना डुबो दिया
साहिल पे नैनों का वो भँवर याद आ गया

तूफ़ाँ में मुझको थाम के अविचल खड़ा रहा
जब-जब चली हवा,वो शजर याद आ गया
=============================

(मौलिक व अप्रकाशित)

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Comment

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Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 18, 2016 at 11:44am

आ0 भाई जायनित जी बहुतसुन्दरग़ज़ल हुई है l

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on April 14, 2016 at 10:04pm

बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई  है आदरणीय जयनित जी। दाद कुबूल करें।

Comment by maharshi tripathi on April 14, 2016 at 8:39pm

बहुत बढ़िया गजल कही है आ. आपने ,दाद कुबुलें |

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