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इक जान हो जाएगी ....

इक जान हो जाएगी ....

बड़ा अज़ीब मंज़र होगा
जब बहार आएगी

हर गुलशन
गुलों की महक से
लबरेज़ होगा
सब कुछ नया नया होगा

हर गुल में
तू मेरा अक्स ढूंढेगी

हर पंखुड़ी में कसमसाती
मैं तेरी उठान देखूँगा

कितना सुखद अहसास होगा
जब मेरी नज़रों के लम्स
तेरे जिस्म से गुफ़्तगू करेंगे

तेरा हिज़ाब
तुझसे अदावत करेगा

तेरे लबों पे
तिलभर हंसी की जुम्बिश होगी

तेरी मख़मूर नज़रें की
मैं कदमबोसी करूंगा

सच बड़ा अजीब मंज़र होगा
जब वो बहार मुझे
अपने ख़्वाबों से मिलाएगी

जब कोई अल्हड़ बादे सबा 

तुझे छू कर
मेरी रूह में उतर जाएगी

तू बन के कायनात
मेरी आगोश में समा जाएगी

न मैं कुछ कह पाऊंगा 

न तू कुछ कह पाएगी

और हौले हौले जब
हर सांस
इक जान हो जाएगी

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment

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Comment by Sushil Sarna on May 26, 2016 at 1:51pm

आदरणीया कल्पना भट्ट जी प्रस्तुति पर आपकी आत्मीय प्रशंसा का हार्दिक आभार। 

Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on May 25, 2016 at 9:28pm

बेहतरीन रचना | हार्दिक बधाई आदरणीय सुशिल सरना जी | 

Comment by Sushil Sarna on May 25, 2016 at 12:26pm

आदरणीया कांता रॉय जी भावों की गहनता को स्वीकृति देती आपकी आत्मीय प्रशंसा का हार्दिक आभार। 

Comment by kanta roy on May 25, 2016 at 8:55am

बहुत  ही नजाकत  से इस  "अज़ीब मंज़र "  की  खूबसूरती  को  कलम में  कैद  किया  है  आपने  आदरणीय  सुशील   सरना  जी , बधाई  स्वीकार  करे 

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