हाँ वो ख्वाब हैं
वो ख्वाब ही हैं जब तुम
तख़य्युल के परों से उड़ते
चाँद का नूर चुरा लाती हो
और तोड़ कर बादलों के रेशमी टुकड़े
गूंध कर उनको चांदनी में फिर
किसी अनजान ज़मीं पर उसके
महल तामीर किये हैं तुमने
और उन महलों में बसा रखें हैं वो सारे मंज़र
जो हक़ीक़त में बदल जाएं तो
दर्द दुनिया से चले जाएं हमेशा के लिए
हाँ वो ख्वाब हैं जब तुम
चेहरे पे हवाओं की शोखियाँ सहती
बंद आँखों में समाए हुए दुनिया अपनी
इन फ़िज़ाओं में कहीं दूर उड़ी जाती हो
बेपरवाह ,क़ुदरत के सब उसूलों से
बेनियाज़ , खुदा के भी सहारे से
हाँ वो ख़्वाब हैं
वो ख्वाब हैं , लेकिन
मेरी जाँ , मुझे भरोसा है
इन सभी ख्वाबों पर हकीकत की तरह
बस कुछ है, तो इंतज़ार उस दिन का
ताबीर इन ख़्वाबों की जब
दुनिया को नज़र आएगी
आसमां सर झुका के देखेगा
ज़ुल्फ़ तुम्हारी जो फ़िज़ाओं में बिखर जाएगी
- सालिम
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीया कान्ता रॉय जी और आदरणीया कल्पना भट्ट जी , हौस्ला अफज़ाई के लिए , काफ़ी देर से हाज़िर हो सका इसके लिए माफ़ी चाहूँगा
चेहरे पे हवाओं की शोखियाँ सहती
बंद आँखों में समाए हुए दुनिया अपनी
इन फ़िज़ाओं में कहीं दूर उड़ी जाती हो
बेपरवाह ,क़ुदरत के सब उसूलों से
बेनियाज़ , खुदा के भी सहारे से
बहुत खूब आदरणीय सालिम जी |
किसी अनजान ज़मीं पर उसके
महल तामीर किये हैं तुमने
और उन महलों में बसा रखें हैं वो सारे मंज़र
जो हक़ीक़त में बदल जाएं तो
दर्द दुनिया से चले जाएं हमेशा के लिए---- वाह ! बहुत गहरा लेखन हुआ है यहाँ आपका आदरणीय सालिम जी , बधाई प्रेषित है
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