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saalim sheikh
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saalim sheikh updated their profile
Nov 12, 2019

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Gender
Male
City State
Allahabad U.P
Native Place
Allahabad
Profession
student
About me
i am a student of urdu

Saalim sheikh's Blog

बस तेरी थोड़ी सी कमी होगी

ज़िन्दगी खत्म तो नहीं होगी

रूह भी जिस्म में कहीं होगी 

धड़कनें दिल मे ही बसी होगी

बस तेरी थोड़ी सी कमी होगी

ये शब ओ रोज़ यूं ही गुज़रेंगे

चाँद सूरज भी पाली बदलेंगे

धूप होगी और चांदनी होगी

बस तेरी थोड़ी सी कमी होगी

वक़्त मुझे भूलना सिखा देगा

फिर कोई आएगा, हंसा देगा 

बाद तेरे भी हर ख़ुशी होगी 

बस तेरी थोड़ी सी कमी होगी

याद धुँधली तो हो ही जाएगी

वो…

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Posted on October 31, 2018 at 10:51pm — 3 Comments

जानाँ

बिना तेरे हर एक लम्हा मुझे दुशवार है जानाँ 

अगर ये प्यार है जानाँ, तो मुझको प्यार है जानाँ

हसीं चेहरे बहुत देखे फ़िदा होना भी मुमकिन था 

फ़िदा हो कर फ़ना होना ये पहली बार है जानाँ

हमें कहना नहीं आया ,और समझा भी नहीं तुमने 

मेरा हर लफ़्ज़ तुमसे प्यार का इज़हार है …

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Posted on September 7, 2016 at 5:30am — 3 Comments

बोझ : नज़्म

थाम लो इन आंसुओं को

बह गए तो ज़ाया हो जाएंगे

इन्हें खंजर बना कर पेवस्त कर लो

अपने दिल के उस हिस्से में 

जहाँ संवेदनाएं जन्म लेती हैं

उसके काँधे पर रखी लाश से कहीं ज्यादा वज़न है

तुम्हारी उन संवेदनाओं की लाशों का 

जिन्हें अपने चार आंसुओं के कांधों पर 

ढोते आए हो तुम 

अब और हत्या मत करो इनकी

संवेदनाओं का कब्रस्तान बनते जा रहे तुम

हर ह्त्या, आत्महत्या, बलात्कार पर 

एक शवयात्रा निकलती है तुम्हारी आँखों…

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Posted on August 26, 2016 at 1:00am — 4 Comments

मंज़र ( नज़्म )

अम्बर के दरीचों से फ़रिश्ते अब नहीं आते

न परियाँ आबशारों में नहाने को उतरती हैं

न बच्चों की हथेली पर कोई तितली ठहरती है

न बारिश की फुआरों में वो खुशियाँ अब बरसती हैं

सभी लम्हे सभी मंज़र बड़े बेनूर से हैं सब

मगर हाँ एक मंज़र है

जहां फूलों के हंसने की अदा महफूज़ है अब भी

जहाँ कलियों ने खिलने का सलीक़ा याद रखा है

जहां मासूमियत के रंग अभी मौजूद हैं सारे

वो मंज़र है मेरे हमदम

तुम्हारे मुस्कुराने का

- शेख…

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Posted on July 5, 2016 at 4:21pm — 4 Comments

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At 12:26am on October 25, 2015,
सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर
said…

ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार की ओर से आपको जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनायें...

At 9:29am on September 23, 2015, Sheikh Shahzad Usmani said…
आदाब अर्ज़ जनाब,
ख़ुशनसीब हूँ कि आज आपकी पुरस्कृत लघु कथा " क़ातिल का मज़हब" पढ़कर लघु कथा विधा का अहम सबक़ सीखने को मिला।उम्दा, उत्कृष्ट लघु कथा सृजन के लिए बहुत बहुत बधाई और शुभकामनाएँ आपको....आपसे मुझे बहुत कुछ सीखने को मिलेगा।
_शेख़ शहज़ाद उस्मानी
शिवपुरी म.प्र.
At 11:32am on August 17, 2015,
मुख्य प्रबंधक
Er. Ganesh Jee "Bagi"
said…

आदरणीय सालिम शेख जी.
सादर अभिवादन !
मुझे यह बताते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी रचना "क़ातिल का मज़हब" को "महीने की सर्वश्रेष्ठ रचना" सम्मान के रूप मे सम्मानित किया गया है, तथा आप की छाया चित्र को ओ बी ओ मुख्य पृष्ठ पर स्थान दिया गया है | इस शानदार उपलब्धि पर बधाई स्वीकार करे |
आपको प्रसस्ति पत्र शीघ्र उपलब्ध करा दिया जायेगा, इस निमित कृपया आप अपना पत्राचार का पता व फ़ोन नंबर admin@openbooksonline.com पर उपलब्ध कराना चाहेंगे | मेल उसी आई डी से भेजे जिससे ओ बी ओ सदस्यता प्राप्त की गई हो |
शुभकामनाओं सहित
आपका
गणेश जी "बागी
संस्थापक सह मुख्य प्रबंधक 
ओपन बुक्स ऑनलाइन

 
 
 

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"आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार.. बहुत बहुत धन्यवाद.. सादर "
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"हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय। "
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"आपका हार्दिक आभार, आदरणीय"
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"आदरणीय सौरभ पांडेय सर, बहुत दिनों बाद छंद का प्रयास किया है। आपको यह प्रयास पसंद आया, जानकर खुशी…"
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"आदरणीय आदरणीय चेतन प्रकाशजी मेरे प्रयास को मान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। हार्दिक आभार। सादर।"
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"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त चित्र पर बढ़िया प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
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"आदरणीया प्रतिभा जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करती मार्मिक प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
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"आदरणीय दयाराम जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करते बहुत बढ़िया छंद हुए हैं। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
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pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय दयाराम मथानी जी छंदों पर उपस्तिथि और सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार "
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"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी छंदों पर उपस्तिथि और सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार "
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