ज़िन्दगी खत्म तो नहीं होगी
रूह भी जिस्म में कहीं होगी
धड़कनें दिल मे ही बसी होगी
बस तेरी थोड़ी सी कमी होगी
ये शब ओ रोज़ यूं ही गुज़रेंगे
चाँद सूरज भी पाली बदलेंगे
धूप होगी और चांदनी होगी
बस तेरी थोड़ी सी कमी होगी
वक़्त मुझे भूलना सिखा देगा
फिर कोई आएगा, हंसा देगा
बाद तेरे भी हर ख़ुशी होगी
बस तेरी थोड़ी सी कमी होगी
याद धुँधली तो हो ही जाएगी
वो…
Added by saalim sheikh on October 31, 2018 at 10:51pm — 3 Comments
बिना तेरे हर एक लम्हा मुझे दुशवार है जानाँ
अगर ये प्यार है जानाँ, तो मुझको प्यार है जानाँ
हसीं चेहरे बहुत देखे फ़िदा होना भी मुमकिन था
फ़िदा हो कर फ़ना होना ये पहली बार है जानाँ
हमें कहना नहीं आया ,और समझा भी नहीं तुमने
मेरा हर लफ़्ज़ तुमसे प्यार का इज़हार है …
Added by saalim sheikh on September 7, 2016 at 5:30am — 3 Comments
थाम लो इन आंसुओं को
बह गए तो ज़ाया हो जाएंगे
इन्हें खंजर बना कर पेवस्त कर लो
अपने दिल के उस हिस्से में
जहाँ संवेदनाएं जन्म लेती हैं
उसके काँधे पर रखी लाश से कहीं ज्यादा वज़न है
तुम्हारी उन संवेदनाओं की लाशों का
जिन्हें अपने चार आंसुओं के कांधों पर
ढोते आए हो तुम
अब और हत्या मत करो इनकी
संवेदनाओं का कब्रस्तान बनते जा रहे तुम
हर ह्त्या, आत्महत्या, बलात्कार पर
एक शवयात्रा निकलती है तुम्हारी आँखों…
Added by saalim sheikh on August 26, 2016 at 1:00am — 4 Comments
अम्बर के दरीचों से फ़रिश्ते अब नहीं आते
न परियाँ आबशारों में नहाने को उतरती हैं
न बच्चों की हथेली पर कोई तितली ठहरती है
न बारिश की फुआरों में वो खुशियाँ अब बरसती हैं
सभी लम्हे सभी मंज़र बड़े बेनूर से हैं सब
मगर हाँ एक मंज़र है
जहां फूलों के हंसने की अदा महफूज़ है अब भी
जहाँ कलियों ने खिलने का सलीक़ा याद रखा है
जहां मासूमियत के रंग अभी मौजूद हैं सारे
वो मंज़र है मेरे हमदम
तुम्हारे मुस्कुराने का
- शेख…
ContinueAdded by saalim sheikh on July 5, 2016 at 4:21pm — 4 Comments
हाँ वो ख्वाब हैं
वो ख्वाब ही हैं जब तुम
तख़य्युल के परों से उड़ते
चाँद का नूर चुरा लाती हो
और तोड़ कर बादलों के रेशमी टुकड़े
गूंध कर उनको चांदनी में फिर
किसी अनजान ज़मीं पर उसके
महल तामीर किये हैं तुमने
और उन महलों में बसा रखें हैं वो सारे मंज़र
जो हक़ीक़त में बदल जाएं तो
दर्द दुनिया से चले जाएं हमेशा के लिए
हाँ वो ख्वाब हैं जब तुम
चेहरे पे हवाओं की शोखियाँ…
Added by saalim sheikh on May 22, 2016 at 11:37am — 3 Comments
Added by saalim sheikh on May 8, 2016 at 11:41pm — 5 Comments
Added by saalim sheikh on August 3, 2015 at 8:00pm — 15 Comments
आज एक महीना होने को आया था और क़लम ऐसी जड़ हुई थी कि आगे बढ़ने का नाम ही ना लेतीI
ऐसा उसके साथ पहले भी कई बार हुआ था ,कि वो लिखने बैठता और पूरा पूरा दिन गुज़र जाने पर भी काग़ज़ कोरा रह जाता, लेकिन यहाँ बात कुछ और ही थी ,आज खयालात उसके साथ कोई खेल नहीं खेल रहे थे , वो जानता था कि उसे क्या लिखना है ,कहानी के सारे किरदार उसके ज़हन में मौजूद थे I
वो बूढी मज़लूम औरत , वो भोली सी कमसिन बच्ची , वो सफ्फ़ाक आँखों वाला बेरहम क़ातिल , सारे किरदार उसकी आँखों के सामने…
ContinueAdded by saalim sheikh on July 22, 2015 at 2:00pm — 26 Comments
हमारा प्यार आँखों से अयाँ हो जाएगा इक दिन
छुपाना लाख चाहोगे बयाँ हो जाएगा इक दिन
ये सब वहशत-ज़दा रातें इसी उम्मीद में गुज़रीं
कि तुम आओगे , रौशन ये समां हो जाएगा इक दिन
न टूटे दिल , न तन्हा रात , न भीगी हुई पलकें
मगर सब छीन कर बचपन,जवां हो जाएगा इक दिन
तुम्हारे सुर्ख होठों की महक में ऐसा जादू है
कि भवरों को भी फूलों का गुमाँ हो जाएगा इक दिन
लिखो बस गीत उल्फ़त के और नग्मे प्यार के…
ContinueAdded by saalim sheikh on June 29, 2015 at 11:30am — 19 Comments
एक तवील ख़ामोशी
ज़हन के दरीचे में
ख़ामोशी ज़बाँ की नहीं
ख़ामोशी ख्यालों की
ज़हन में जो उठते थे
उन सभी सवालों की
सवाल कुछ हैं दुनिया से
जवाब जिनके मिलने की
उम्मीद छोड़ दी मैंने
सवाल कुछ है अपनों से
जवाब जिनके मालुम हैं
पर उन्ही से सुनने हैं
सवाल कुछ हैं खुद से भी
सवाल हर एक लम्हे का
ज़िन्दगी के सफ्हे पर
जो गुज़र गया पहले
या गुजरने वाला है
क्या वो दे गया मुझको
बजुज़ चंद और सवालों के
जवाब जिनके मिलने तक…
ContinueAdded by saalim sheikh on June 4, 2015 at 1:40pm — 11 Comments
मेरा मज़हब सच्चा है
अमन सिखाता है
खूंरेजी से नफरत है हमें
और नाज़ है मुझे अपने मज़हब पर
कुछ लोग फैलाते हैं झूठी सच्ची कहानियां
कि हम दुश्मन हैं अमन के
कि हम नफरतें बांटते हैं
कि हमें क़द्र नहीं इंसानी जानों की
क़सम है मुझे अपने पुर अम्न मज़हब की
जो मुझे मिल जाएँ वो लोग जो फैलातें हैं ये…
ContinueAdded by saalim sheikh on May 25, 2015 at 11:51am — 3 Comments
हूँ महफ़िलों में तन्हा, खुद की नज़र में रुस्वा
हर एक रंग फीका , हर एक शै फसुर्दा
आवाज़ें दोस्तों की ,मुझ से नहीं हैं गोया
ज़िंदा दिली भी जैसे , करती है मुझ से पर्दा
क्या ग़म है ज़िन्दगी में , तुमको बताऊँ कैसे
अब तक हुआ नहीं है , ये राज़ मुझे पे अफ़्शाँ
उलझन है कैसी दिल की ? उलझन यही है मुझको
रंग ज़िन्दगी से रूठे , दिल भी रंगों से रूठा…
Added by saalim sheikh on December 10, 2014 at 3:30pm — 7 Comments
नए ज़हनों को छूने दो अदब के अनछुए पहलू
इन्हे मीरास में उलझी हुई ज़न्जीर मत देना
लबों को सी लिया मैने,खुदा ये बस में था मेरे
जो आहें दिल से उठ जाएं उन्हें तासीर मत देना
नई है नस्ल नई जंगें नए हथियार भी होंगे
क़लम दो मुल्क के हाथों में अब शमशीर मत देना
मचल जाए ना मेरी रूह फिर दुनिया में आने को
जिया गुमनाम हूँ तो मौत को तशहीर मत देना
रहूँ मैं मुन्हसिर दीदार…
ContinueAdded by saalim sheikh on September 16, 2014 at 1:30pm — 13 Comments
मंज़िल पे खड़ा हो के सफ़र ढूँढ रहा हूँ
हूँ साए तले फिर भी शजर ढूँढ रहा हूँ
औरों से मफ़र ढूँढूं ये क़िस्मत कहाँ मेरी?
मैं खुद की निगाहों से मफ़र ढूँढ रहा हूँ
दंगे बलात्कार क़त्ल-ओ-खून ही मिले
अख़बार मे खुशियों की खबर ढूँढ रहा हूँ
शोहरत की किताबों के ज़ख़ायर नही मतलूब
जो दिल को सुकूँ दे वो सतर ढूँढ रहा हूँ
ना जाने हक़ीक़त है वहम है की फ़साना
वाक़िफ़ नही मंज़िल से मगर ढूँढ रहा हूँ
ये हिंदू का शहर है…
ContinueAdded by saalim sheikh on September 18, 2013 at 5:32pm — 14 Comments
मुजरिम मैं नहीं पर मुफ़लिसी गोयाई छीन लेती है
दौलत आज भी इन्साफ की बीनाई छीन लेती है
हैं जौहर आज भी मुझ में वही तेवर भी हैं लेकिन
सियासत अब मेरे हाथों से रोशनाई छीन लेती है
नफरत थक गयी दामन मेरा मैला न कर पाई
मोहब्बत मेरे दामन से हर रुसवाई छीन लेती है
यही रहज़न कभी रहबर हुआ करता था बस्ती का
ग़रीबी रंग में आती है तो अच्छाई छीन लेती है
~सालिम शेख
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by saalim sheikh on September 15, 2013 at 10:02pm — 20 Comments
वो जन्नत है,वो रहमत है,वो मेराज-ए-मोहब्बत है
समंदर मेँ कहाँ, जो माँ की ममता में है गहराई
उसी की तरबियत से इस चमन में फूल खिलते हैँ
बिना मरियम के क्या ईसा और ईसा की मसीहाई
-सालिम शेख
मौलिक व अप्रकाशित
Added by saalim sheikh on September 15, 2013 at 10:59am — 5 Comments
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