हमारा प्यार आँखों से अयाँ हो जाएगा इक दिन
छुपाना लाख चाहोगे बयाँ हो जाएगा इक दिन
ये सब वहशत-ज़दा रातें इसी उम्मीद में गुज़रीं
कि तुम आओगे , रौशन ये समां हो जाएगा इक दिन
न टूटे दिल , न तन्हा रात , न भीगी हुई पलकें
मगर सब छीन कर बचपन,जवां हो जाएगा इक दिन
तुम्हारे सुर्ख होठों की महक में ऐसा जादू है
कि भवरों को भी फूलों का गुमाँ हो जाएगा इक दिन
लिखो बस गीत उल्फ़त के और नग्मे प्यार के गाओ
हमारा मुल्क सपनों का जहाँ हो जाएगा इक दिन
''मौलिक एवं अप्रकाशित''
Comment
आदरणीय सलीम भाई जी मेरे कहे के अनुमोदन हेतु आभार. ग़ज़ल ने परंपरा अनुसार ना का प्रयोग उचित नहीं माना जाता और इसका वज्न न के समान 1 (लघु) ही होता है. जिन बड़े शायरों की आप चर्चा कर रहे है, वास्तव में ये उनकी नहीं बल्कि ऑनलाइन प्रकाशित या टंकित करने वालों की भी त्रुटी हो सकती है. खैर जब ग़ज़ल विधा में ही सर्जना करनी है तो उसके नियमों और परंपरा का पालन ही उचित है. ये मेरा विचार है.
अब संशोधित ग़ज़ल पर चर्चा कर रहा हूँ-
न टूटे दिल , न तन्हा शब , न ये भीगी हुई पलकें // न टूटे दिल (१२२२)/ न तन्हा शब (१२२२) /न ये भीगी(१२२२)/ हुई पलकें (१२२२)//
लिखो बस गीत उल्फ़त के और नग्मे प्यार के गाओ / लिखो बस गीत उल्फ़त के कि नग्मे प्यार के गाओ
यदि इस मिसरे में 'और' रखना है तो 'उल्फत के' का 'के' हटाना होगा या फिर 'और' के स्थान पर 'कि' लिखना होगा तभी मिसरा बह्र में होगा.
सादर
आदरणीय Sushil Sarna जी , डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी , और Sushil Sarna जी , मेरी ख़ुशनसीबी कि ग़ज़ल आप सब को पसंद आई , बहुत बहुत शुक्रिया हौसला अफज़ाई के लिए
आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी , तहे दिल से शुक्रिया , आपके सुझाव पर अमल कर के मैंने रचना दोबारा पोस्ट कर दी है ,
बहुत शुक्रिया
अगर आप 'न' और 'ना' भी पर प्रकाश डाल सकें तो बहुत मेहरबानी होगी ,सादर!
आदरणीय Rahul Dangi जी , बेहद शुक्रिया , जी मैंने आखिर वाले 'न' को 'ना' की जगह ही लिखा था , और मैंने कई बड़े शायरों को ऐसा करते देखा है , अगर बात सिर्फ ग़ज़ल की है तो मुमकिन है कि ऐसा हो
अगर कोई सज्जन इस पर प्रकाश डाल सकें तो बड़ी मेहरबानी होगी
बहुत शुक्रिया Pari M Shlok जी
इनायत! महर्षि त्रिपाठी जी , शुक्रिया
बेहद शुक्रिया MAHIMA SHREE जी
बहुत बहुत शुक्रिया जनाब वीनस केसरी जी , आप को ग़ज़ल पसंद आई ये मेरी खुशनसीबी है , मैं कोशिश कर हा हूँ और इस मंच से बहुत कुछ सीखने को मिल रहा है, आपके सुझाव का बेहद शुक्रिया , मैं आइन्दा ख्याल रखूँगा इस बात का
धन्यवाद आदरणीय Saurabh Pandey जी , मैंने कई जगह 'और' को 'औ' की तरह पढ़ते हुए सुना था इसलिए ये ग़लतफ़हमी हुई
आपकी कीमती इस्लाह के लिए बेहद शुक्रिया !
बढिया प्रयास हुआ है. दाद कुबूल किजीये.
और को एक मात्रिक करने के लिए व लिखा जा सकता है.
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