एक तवील ख़ामोशी
ज़हन के दरीचे में
ख़ामोशी ज़बाँ की नहीं
ख़ामोशी ख्यालों की
ज़हन में जो उठते थे
उन सभी सवालों की
सवाल कुछ हैं दुनिया से
जवाब जिनके मिलने की
उम्मीद छोड़ दी मैंने
सवाल कुछ है अपनों से
जवाब जिनके मालुम हैं
पर उन्ही से सुनने हैं
सवाल कुछ हैं खुद से भी
सवाल हर एक लम्हे का
ज़िन्दगी के सफ्हे पर
जो गुज़र गया पहले
या गुजरने वाला है
क्या वो दे गया मुझको
बजुज़ चंद और सवालों के
जवाब जिनके मिलने तक
सवालों की नई दुनिया
आबाद होंगी ज़हनों में
सवाल जो न सुलझेंगे
ज़िन्दगी की उलझन में
सवाल जो कि खुशियों पर
पहरे लगा के बैठेंगे
हर सुबह झिन्झोड़ेंगे
नींद से जगाएंगे
और रात तक हर एक
लम्हे को मुझ से छीनेंगे
और एक दिन जब मैं
मौत के मुहाने पर
ज़िन्दगी के हासिल को
जोड़ने जो बैठूँगा
तो चंद सवालों के सिवा
और कुछ भी जीने का
हासिल जो न नज़र आया
उस वक़्त जो उठ्ठेगा
सवाल एक और कि जिसका
जवाब भी ना सूझेगा
कि क्या मेरे जीने का
हासिल बस एक सवाल ही है ?
उसी सवाल के डर से
ओढ़ ली है ख़ामोशी
ख़ामोशी ज़बां की नहीं
ख़ामोशी ख्यालों की
ज़हन में जो उठते हैं
उन सभी सवालों की
-सालिम शेख
''मौलिक व अप्रकाशित ''
Comment
शुक्रिया आदरणीय Saurabh Pandey जी ,कुछ निजी कारणों से पिछले दिनों काफ़ी व्यस्त रहने के कारण यहाँ हाज़िर नहीं हो सका था ,
देरी के लिए कृपया क्षमा करें
आप सभी का तहे दिल से शुक्रिया हौसला अफज़ाई के लिए , जनाब maharshi tripathi जी , krishna mishra 'jaan'gorakhpuri भाई ,
Manoj kumar Ahsaas भाई , narendrasinh chauhan भाई और जनाब डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव साहब
बहुत बहुत शुक्रिया जनाब Mohan Sethi 'इंतज़ार' साहब
आपकी अपनी ही पोस्ट पर वापसी नहीं हुई है, भाई.. बहरहाल बधाइयाँ इस प्रस्तुति केलिए..
सुन्दर ,,आपको हार्दिक बधाई आ. saalim sheikh जी |
बहुत सुन्दर! हार्दिक बधाई!भाई सालिम शेख जी.
बहुत बढ़िया
बहुत बढ़िया , आपका स्वागत है , सादर .
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