मेरा मज़हब सच्चा है
अमन सिखाता है
खूंरेजी से नफरत है हमें
और नाज़ है मुझे अपने मज़हब पर
कुछ लोग फैलाते हैं झूठी सच्ची कहानियां
कि हम दुश्मन हैं अमन के
कि हम नफरतें बांटते हैं
कि हमें क़द्र नहीं इंसानी जानों की
क़सम है मुझे अपने पुर अम्न मज़हब की
जो मुझे मिल जाएँ वो लोग जो फैलातें हैं ये अफवाहें
जो गढ़ते हैं ये फ़रेब , सियाह करते हैं हमारे माथे को
जो मिल जाएँ तो
काट कर रख दें उनकी वो फ़रेबी ज़बानें
उतार दें वो सर शानों से
पाक कर दें ज़मीन को उन नापकों से
उनके लहू से साफ़ कर दें वो दाग़ जो वो लगा गए
मिटा दें वो स्याही जिससे बदनुमा हो गई थीं हमारी शक्लें
ताकि फिर न उठ्ठे कोई सवाल
हमारी 'अमन पसंदी' पर
-सालिम शेख
''मौलिक व अप्रकाशित ''
Comment
क़सम है मुझे अपने पुर अम्न मज़हब की
जो मुझे मिल जाएँ वो लोग जो फैलातें हैं ये अफवाहें
जो गढ़ते हैं ये फ़रेब , सियाह करते हैं हमारे माथे को
जो मिल जाएँ तो
काट कर रख दें उनकी वो फ़रेबी ज़बानें
उतार दें वो सर शानों से
पाक कर दें ज़मीन को उन नापकों से
उनके लहू से साफ़ कर दें वो दाग़ जो वो लगा गए
भाई सालिम शेख साहब, अमन के लिए आपकी सोच सीधी और स्पष्ट है. इस तरह से शांति की स्थापना हो जाये तो संभवतः बवालिया आगे से सिर न उठाये.
वैसे, इस तरह के प्रयास पिछले आठ-नौ सौ वर्षों से हो रहे हैं.
आपकी इस पहली प्रस्तुति पर हार्दिक धन्यवाद और शुभकामनाएँ ..
शुभेच्छाएँ
धन्यवाद आदरणीय ,आज विडंबना ही यही है कि सारे अधर्म के काम धर्म के नाम पर हो रहे हैं , उत्साहवर्धन के लिए बहुत धन्यवाद
अरे वाह क्या कमाल का कटाक्ष किया है धार्मिक उन्मादियों पर, बातें अमनपसन्दी की और काम खूं रेज़ी का ? बहुत खूब भाई सलीम शेख जी।
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