नए ज़हनों को छूने दो अदब के अनछुए पहलू
इन्हे मीरास में उलझी हुई ज़न्जीर मत देना
लबों को सी लिया मैने,खुदा ये बस में था मेरे
जो आहें दिल से उठ जाएं उन्हें तासीर मत देना
नई है नस्ल नई जंगें नए हथियार भी होंगे
क़लम दो मुल्क के हाथों में अब शमशीर मत देना
मचल जाए ना मेरी रूह फिर दुनिया में आने को
जिया गुमनाम हूँ तो मौत को तशहीर मत देना
रहूँ मैं मुन्हसिर दीदार को कागज़ के टुकड़े पर ?
मुझे तो चाँद है काफी भले तस्वीर मत देना
-सालिम शेख
"मौलिक व अप्रकाशित"
Comment
आदरणीय योगराज प्रभाकर जी मार्गदर्शन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद
अभी ग़ज़ल की बारीकियां सीखने की कोशिश जारी है
बस आप गुणीजनों से स्नेह बने रखने का आग्रह है
सादर
आदरणीय गिरिराज भंडारी जी, Sulabh Agnihotri जी "नस्ल" की तक़्तीअ में थोड़ा उलझने की वजह से शायद ऐसा हुआ है ,
नस्ल की तक़्तीअ २१ होगी या २ ? अगर आप गुणीजन मार्गदर्शन करने का कष्ट करें तो बड़ी कृपा होगी
बहुत बहुत शुक्रिया Neeraj Mishra "प्रेम" जी डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी laxman dhami जी , khursheed khairadi जी, भुवन निस्तेज जी , Ram Awadh VIshwakarma जी
नई नस्लें नई जंगें नए हथियार भी होंगे
ऐसा परिवर्तन करने पर गजल बहर में आजायेगी।
बहर है मफाईलुन मफाईलुन मफाईलुन मफाईलुन
गंजंल लाजबाज है। बधाई
वाह बाकमाल शायरी i मुबारक हो i
आदरणीय भाई सलीम शेख जी इस उम्दा ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई .
नई है नस्ल नई जंगें नए हथियार भी होंगे
क़लम दो मुल्क के हाथों में अब शमशीर मत देना
आदरणीय सलीम साहब ,उम्दा ख्यालात और नायाब अशहार पर ढेरों दाद कबूल फरमाएं | वा.....ह
आ. सलीम भाई , सभी अशआर बढ़िया हुए हैं , आपको दिली मुबारकबाद , ग़ज़ल के लिए | आपने बहर नहीं दिया है शायद ये मिसरा बेबहर हो - नई है नस्ल नई जंगें नए हथियार भी होंगे , देख लीजिएगा , अगर बहर ,१२२२ १२२२ १२२२ १२२२ है तो |
नई है नस्ल नई जंगें नए हथियार भी होंगे
क़लम दो मुल्क के हाथों में अब शमशीर मत देना
बेहद खूबसूरत ख़यालात.... बधाई है...
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