गान मेरा स्वांस है,
यह अजब विश्वास है
दूरियाँ ही दूरियाँ हैं
लक्ष्य तक,
तम ही तम है
सूर्य के द्वार तक
पाँव में
सर्पदंशी फांस है
गान मेरा स्वांस है,
यह अजब विश्वास है
ओस में कागज़ों से
मुस गए हैं आदमी
भय अजब सा लिए घरों में
घुस गए हैं आदमी
दीप उज्ज्वल
एक मेरे पास है
गान मेरा स्वांस है,
यह अजब विश्वास है
हाशिये से उतर कर
पसर गए प्रश्न चिह्न
एक सूखी प्यास बन
बिखर गए हैं रात-दिन
संक्रमण का
यह गजब इतिहास है
गान मेरा स्वांस है,
यह अजब विश्वास है
मौलिक एवं अप्रकाशित रचना
सादर,
सुधेन्दु ओझा
Comment
ये बड़ा दुख का विषय यह रचना अब तक किसी के द्वारा पड़ी नही गई , क्या ये सोचनीय स्थिति नही है ?
आदरणीय सुधेन्दु ओझा भाई , तमाम विषमताओं के बावज़ूद कहीं न कहीं आशायें जीवित रहें , यही तो जीवन का सूत्र है । बहुत खूब ! आपको बेहतरीन संदेश देती रचना के लिये हार्दिक बधाई ।
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