स्वप्न, बच्चों की आँखों में
पलना चाहिए।
आगया है समय, हमको
बदलना चाहिए॥
जर्जरावस्था है,
बता दो तन को।
उसे, झुक-झुक के
चलना चाहिए॥
बदल रहा है अब,
मौसम का मिजाज़।
उन्हें दरख्तों पर
उतरना चाहिए॥
कुछ परिंदे,
सारी हदों को तोड़ते हैं।
बुलंद हौसलों को
करना चाहिए॥
मेरा सच,
दुनिया के सच से ख़ूब है।
‘आप’ को इसे
समझना चाहिए॥
‘निर्भया’ से अंधेरे
दूर हों, अतः।
सूर्य अब रातों को
निकलना चाहिए॥
मौलिक एवं अप्रकाशित
सादर,
सुधेन्दु ओझा
Comment
निर्भया’ से अंधेरे
दूर हों, अतः।
सूर्य अब रातों को
निकलना चाहिए -- आदरणीय सुधेन्दु भाई , बहुत अच्छी बात कही आपने । हार्दिक बधाइयाँ आपको ।
‘निर्भया’ से अंधेरे
दूर हों, अतः।
सूर्य अब रातों को
निकलना चाहिए॥----बहुत खूब वाह बहुत बहुत बधाई आपको इस सुन्दर प्रस्तुति के लिए
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