ग़ज़ल ( हादसा घट गया )
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212 -212 -212
यक बयक हादसा घट गया ।
राहे उल्फत से वह हट गया ।
ज़ुल्म में ही था शामिल करम
था गुमाँ मुझको वह पट गया ।
जाऊं सदक़े सियासत तेरे
हर कोई क़ौम में बट गया ।
नाव भी डगमगाने लगी
हो रहा है गुमाँ तट गया ।
ऐसा लगता है फ़हरिस्त से
नाम शायद मेरा कट गया ।
खाये पत्थर गली में तेरी
सर मेरा यूँ नहीं फट गया ।
उनका कूचा यह तस्दीक़ है
मैं यहां यूँ नहीं डट गया ।
(मौलिक व अप्रकाशित )
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