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बहती बयार को यार यूँ ही बहने दो/सुरेश कुमार ' कल्याण '

तमाशबीन नयनों को झुका रहने दो,
इन फड़कते लबों को भी कुछ कहने दो।

अगर हमसे खता कुछ हो गई,
खुद को तो तुम बेखता रहने दो।

इतने अधीर क्यों हो मिलने की खातिर,
हमें भी कुछ गम-ए-जुदाई सहने दो।

जल बिन मीन सा तड़प रहा मन,
बहती बयार को यार यूँ ही बहने दो।

चाँदनी भी है मौसम भी खुशगवार है,
मगर मन उदास है इसे उदास ही रहने दो।

जग हँस रहा है मेरी इन तन्हाइयों पर,
वहम करते हैं लोग इन्हें वहमी ही रहने दो।

मेरे खाक होने से खुशी मिले यार को,
तो मैं खाक हूँ यार खाक ही रहने दो।

मौलिक व अप्रकाशित
सुरेश कुमार ' कल्याण '

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Comment by सुरेश कुमार 'कल्याण' on July 6, 2016 at 1:46pm
श्रद्धेय गिरिराज भंडारी जी सादर आभार। मार्गदर्शन के लिए दिल से धन्यवाद ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 5, 2016 at 8:41pm

आदरणीय सुरेश भाई , भाव और विचार अच्छे है , हार्दिक बधाई । काफिया रदीफ निभाने के कारँ ये ग़ज़ल लग रगी है , पर मिसरे बहर मे नही  हैं , अतः आपकी रचना ग़ज़ल होने से रह गई है ।

Comment by सुरेश कुमार 'कल्याण' on July 5, 2016 at 10:06am
आदरणीय श्री अशोक कुमार रकताले जी रचना पर अपने कीमती विचार देने के लिए हार्दिक आभार।
Comment by सुरेश कुमार 'कल्याण' on July 5, 2016 at 10:05am
आदरणीय डॉ. आशुतोष मिश्रा जी आपको रचना पसंद आई हार्दिक धन्यवाद ।
Comment by Ashok Kumar Raktale on July 5, 2016 at 12:01am

वाह ! अच्छे ख़याल है साहब. बहुत बधाई. सादर.

Comment by Dr Ashutosh Mishra on July 4, 2016 at 5:11pm

इस सुंदर रचना के लिए हार्दिक बधायी सादर 

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