For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

212 212 212 212
वो बहुत खुश है ‘उल्लू’ बनाकर मुझे
और तस्कीं है अहसाँ जताकर मुझे

करते हो फल की उम्मीद ऐ जान तुम*
रेत में मय तमन्ना दबाकर मुझे

कोयले की दहकती हुई आँच पर
रख दिया काँटों में से उठाकर मुझे

अपने अह्सान के बोझ को लादकर
मार तो डाला आखिर बचाकर मुझे

रोज़ बेचैनियाँ ही मिलीं रू-ब-रू
खुद को सारे जहाँ से छुपाकर मुझे

तस्कीं- संतोष

*फल की उम्मीद करते हो नादान तुम
साथ इच्छाओं के यूँ दबाकर मुझे

-मौलिक व अप्रकाशित

Views: 771

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on July 17, 2016 at 8:38am
मुआफ़ी चाहूँगा समर साहब मैं आपसे कुछ ज़ियादा की उम्मीद करता हूँ और बात जब तक मेरे समझ में नहीं आती मैं तरमीम नहीं करता ये सच कहा आपने। वैसे ओबीओ में प्रस्तुत ग़ज़लों में जैसी जहाँ इस्लाह मिली ज़रूरत के मुताबिक बदला भी है।
Comment by Samar kabeer on July 16, 2016 at 8:17pm
मैने पहले ही लिख दिया है कि ये शब्द 'मीम ऐन'मिलाकर बना है इसलिये ऐन की आवाज़ 'य'नहीं 'अ'होगी 'म'अ''मय नहीं,ये लफ़्ज़ ऐसा है कि इसका इस्तेमाल उर्दू शाइरी में नहीं देखा गया,इसकी जगह कुछ और रखना चाहिये था,वैसे आपका ये लहजा मुझे पसन्द नहीं आया,किसी से कुछ सीखने का ये अंदाज़ नहीं होता,लहजे में नर्मी चाहिये, मेरी पहली प्रतिक्रया में ही आपको इशारा समझ लेना चाहिये था,ख़ेर कोई बात नहीं,आप उन टिपिकल लोगों में हैं जो कुछ कहने के बाद उसमें मुश्किल से ही तरमीम करते हैं,हाँ एक बात और ये शब्द भी उर्दू के उन शब्दों में शामिल है जिन्हें देवनागरी में लिखना मुश्किल होता है ।उम्मीद है आप समझ गये होंगे ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on July 16, 2016 at 7:44pm
जनाब समर साहब मय का प्रयोग साथ के अर्थ में देखा है। लेकिन ये क्या बात हुई, यदि मैं ग़लत हूँ तो समाधान भी सुझाना चाहिये न आपने सवाल दाग ही दिया :-)
Comment by जयनित कुमार मेहता on July 16, 2016 at 5:45pm
आदरणीय शिज्जु शकूर जी, बहुत अच्छे अशआर निकले हैं आपने। हार्दिक बधाई

"मय" वाला शेर मुझे भी समझ नहीं आया।
Comment by Samar kabeer on July 16, 2016 at 4:56pm
"रेत में मय तमन्ना दबाकर मुझे"
"मय"का अर्थ तो शराब होता है, विस्तार से बाद में समझाऊंगा,पहले मुझे ये बताइये कि आपने इस शब्द का इस्तेमाल उर्दू शाइरी में कहीं देखा है ? अगर देखा है तो कृपया मुझे भी बताएं । बाक़ी बातें आपके जवाब के बाद ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on July 16, 2016 at 11:02am

बहुत बहुत शुक्रिया आपका आदरणीय मनोज कुमार अहसास जी


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on July 16, 2016 at 11:01am

बहुत बहुत शुक्रिया आ. राजेश दीदी, 

पहले वैसा ही लिखा था कुछ ठीक नहीं लगा इसलिए बदल दिया,


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on July 16, 2016 at 10:59am

बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय सुशील सरना सर


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on July 16, 2016 at 10:58am

बहुत बहुत शुक्रिया जनाब समर कबीर साहब, कृपया विस्तार से समझाएँ


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on July 16, 2016 at 10:58am

बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय गिरिराज जी

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
5 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

देवता क्यों दोस्त होंगे फिर भला- लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२ **** तीर्थ जाना  हो  गया है सैर जब भक्ति का यूँ भाव जाता तैर जब।१। * देवता…See More
21 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
Sunday
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Friday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
Friday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
Friday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service