१ २ २ / १ २ २ / १ २ २ /१ २
याँ कुछ लोग जीते भलों के लिए
जिओ जिंदगी दूसरों के लिए |
गुणों की नहीं माँग दुख वास्ते
सकल गुण जरुरी सुखों के लिए |
मैं गर मुस्कुराऊं, तू मुँह मोड़ ले
शिखर क्यूँ चढूं पर्वतों के लिए ?
मैं किस किस की बातें सुनाऊं यहाँ
जले शमअ कोई शमो के लिए |
मकाँ और दुकाने जो भी हैं यहाँ
जवाँ केलिए ना बड़ों के लिए |
मौलिक और अप्रकाशित
Comment
आदरणीय समर कबीर साहब ,आदाब , बहुत बहुत धन्यवाद आपका | और को उर कर सकते है ,मुझे पता नहीं था | एक निवेदन करना चाहूँगा | ग़ज़ल मैंने आभी अभी सीखना शुरू किया है | गलती होना स्वाभाविक है | मैं इसी ब्लॉग में स्वरचित ग़ज़ल पोस्ट करता रहूँगा | कृपा होगी अगर समय निकाल कर एक बार आप देख ले | आपसे ज्यादा अच्छी तरह मेरी गलती कोई और पकड़ नहीं पायगा |
कष्ट के लिए क्षमा चाहता हूँ |
सादर
आदरणीय समीर कबीर साहिब आदाब ,
मकाँ १२ और २१ दुकाने १२२ सभी १२ हैं २ यहाँ १२
१२२ /११२ /२१२/ २१२ हों रहा है
सानी में
१२ २/ १२ १ /१ २ २ /१२ दुसरे अरकान १२२ के स्थान पर १२१ हो रहा है | कृपया विस्तार से बताने की कष्ट करें | यह बहर से बाहर नहीं हो रहा है ?
शमअ का बहुवचन क्या होगा, कृपया बताएं
सादर
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