बहर २१२२ २१२२ २१२२ २१२
दोस्तों के वेश में देखो यहाँ दुश्मन मिले
चाह गुल की थी मगर बस खार के दंशन मिले |
यारों का अब क्या भरोसा, यारी के काबिल नहीं
जग में केवल रब ही है, जिन से ही सबके मन मिले|
गुन गुनाते थे कभी फूलों में भौरों की तरह
सुख कर गुल झड़ गए तो भाग्य में क्रंदन मिले |
कोशिशें हों ऐसी हर इंसान का होवे भला
उद्यमी नेकी को शासक से भी अभिनन्दन मिले |
देश भक्तों ने है त्यागे प्राण औरों के लिए
उन शहीदों को भी सारे देश का वन्दन मिले |
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
वाह ! आदरणीय कालीपद प्रसाद मंडल जी सादर, बहुत अच्छी गजल हुई है. बहुत-बहुत बधाई स्वीकारें. सुख या सूख देख लें. सादर.
आदरणीय गिरिराज जी, नमस्कार, देरी के लिए क्षमा प्रार्थी हूँ |
मैं बहर का पालन तो कर लेता हूँ परन्तु पढने में मुझे भी अटकाव महसूस होता है ; इसे दूर करने किये दूर करने के लिए कोई उपाय सुझाइए | फिलहाल अभी जो सुझाव आपने दिया है, तदनुसार मैंने सुधार कर लिया | आगे भी कृपा बनाए रखिये |
सादर
आदरणीय समर कबीर साहिब, आदाब ,देरी के लिए क्षमा चाहता हूँ |आज कल मेरा इन्टरनेट मन मौजी कर रहा है | कभी आता है कभी जाता है | इसीलिए नियमित हाज़िर नहीं हो पा रहा हूँ | ग़ज़ल की तारीफ़ के लिए हार्दिक धन्यवाद | मैंने सुधार कर लिया है | आगे भी कृपा बनाए रखिये |
सादर
आदरनीय काली पद भाई , गज़ल का बहुत अच्छा प्रयास कुछ है , और प्रयास की दिशा भी सही है , हार्दिक बधाइयाँ ।
दोस्तों के वेश में देखो यहाँ दुश्मन मिले
मिलना था गुल मुझको काँटों का मुझे दंशन मिले | बहर सही है ... पर शब्द संयोजन सही न होने के कारण अटकाव है
चाह गुल की थी मगर बस खार के दंशन मिले
यारों की अब क्या भरोसा, यारी के काबिल नहीं --- यारों का भरोसा
जग में केवल रब ही है, जिन से ही सबके मन मिले|
गुन गुनाते थे कभी फूलों में भौरों की तरह
फूल सुख कर झड़ गए तो भाग्य में क्रंदन मिले | सुख नही सूख ..... सूख कर गुल झड़ गये तो .....
कोशिशें हों ऐसा हर इंसान का होवे भला ---- कोशिशें हों ऐसी
उद्यमी नेकी को शासक से भी अभिनन्दन मिले | बहुत अच्छा
देश भक्तों खुद ही त्यागे प्राण औरों के लिए -- देख भक्तों ने है त्यागे प्राण औरों के लिये
उन शहीदों को भी सारे देश का वन्दन मिले |
कहन मे सम्भावनायें बहुत होतीं हैं , चाहे तो आप स्वयम कुछ और सुधार कर सकते हैं
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