आज सुबह सुबह ही सब लोग ईद की तैयारी में लग गएI अब्दुल मियां एक बकरी का बच्चा लाये और क़ुरबानी की तैयारियां शुरू हुई,
अब्दुल का दस साल का लड़का सलीम गुमसुम सा ये सब देख रहा था,
अब्बू से पूछा - अब्बू ये सब क्यों हो रहा है?
अब्दुल बोला - बेटा हमारी परम्परा है की सबसे प्यारी चीज को कुर्बान करो तो जन्नत मिलती हैI ये सब तेरी ख़ुशी के लिए हो रहा हैI
सलीम - अब्बू आप ही तो कहते है मेरा सलीम बेटा दुनिया में सबसे प्यारा हैI तो फिर इस बेजुबान को क्यों?
"मौलिक व अप्रकाशित"
Comment
Mananiya yograj ji
me OBA ke har sadasya ka samman karta hu agar meri tipani se kisi ko thes pahuchi ho to me mafi mangta hu, rahi bat dharmik bhavna ki mene is katha me koi galat bat nahi kahi hai, shekh usman ji ne ise apni tipani me likhit bat "किसी भी मुस्लिम परिवार में कभी भी ऐसे संवाद की गुंजाइश ही नहीं रहती क्योंकि तमाम ज़रूरी तालीम व इल्म बच्चों को होश संभालते ही दे दी जाती है" ne ise dharm se jod diya, yaha par wo kis talim ki bat kar rahe hai aap khud samajte hai, me to sammer ji ka bada fen hu, unki likhi har katha or kavita ko padta hu. ak hi bat kahuga ki padhe likhe logo hi kuritiyo ko khatam kar sakte hai, Dhanyawad
हरिकृष्ण ओझा जी, मंच के वरिष्ठ और सम्माननीय सदस्यों को दी गई आपकी टिप्पणियाँ शिष्टाचार और आपेक्षित मंचीय आचरण के विरुद्ध और भावनाओं को आहत करने वाली हैं, जिनकी मैं कड़े शब्दों में निंदा करता हूँI ओबीओ का यह पवित्र स्थल किसी भी धर्म, समुदाय, जाति, भाषा अथवा किसी भी "वाद" से ऊपर हैI हमारा यदि कोई वाद है तो वह है "राष्ट्र"I अत: किसी भी धार्मिक भावनाएँ भड़काने वाले व्यक्ति के लिए यहाँ न स्थान है न ही उसकी कोई आवश्यकताI आपकी विवादास्पद एंव आपत्तिजनक टिप्पणियाँ तो पहले ही हटा दी गई हैं, यदि आप अपने इस कृत्य के लिए अगले 24 घंटे में क्षमा नहीं मांगते तो आपकी सदस्यता ही तत्काल प्रभाव से समाप्त कर दी जाएगीI
हरिकिशन ओझा जी,
आप रचनाकर्मी हैं, तो आपसे न केवल रचनाओं की अपेक्षा होती है बल्कि शिष्टाचार और संयत व्यवहार की भी अपेक्षा होती है।
आपने जिस ढंग और व्यवहार में टिप्पणियाँ की हैं वह किसी तौर पर सभ्य भाषा में नहीं है। आप अवश्य जानें कि इस मंच पर आपसी समझ को ’सीखने-सिखाने’ का आधार माना जाता है. भावनाएँ अत्यंत आपसी होती हैंं, तभी सीखने के वक़्त कठिन साधना संभव हो पाती है । आपको जानकारी हो, कि आदरणीय समर साहब इस ओबीओ-परिवार के वरिष्ठ और सम्मानित सदस्य हैं। उनके प्रति और उनको लेकर हुई आपकी टिप्पणी बहुत ही घटिया स्तर की है। आपकी उक्त टिप्पणियाँ तत्काल प्रभाव से हटाई जा रही हैं।
राम शिरोमणि जी आप का बहुत बहुत धन्यवाद
मीना पाठक जी आप का बहुत बहुत धन्यवाद
जनाब हरिकिशन ओझा साहिब आदाब,आपकी लघुकथा पढ़ कर ऐसा लगता है कि आप क़ुर्बानी के विषय में कम जानकारी रखते हैं,क़ुर्बानी बकरी के बच्चे की नहीं होती,उसके भी कुछ नियम और क़ायदे हुआ करते हैं,होना ये चाहिये कि हम जिस विषय पर क़लम उठायें पहले उसकी जानकारी एकत्रित कर लें फिर लिखें तो लेखन प्रभाव शाली होगा वरना उसे बेसिर पैर की बात ही समझा जायेगा । कृपया मेरी बात को अन्यथा न लें ।
वाह्ह ! बहुत सटीक
बधाई
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