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बेजुबान - लघु कथा

आज सुबह सुबह ही सब लोग ईद की तैयारी में लग गएI अब्दुल मियां एक बकरी का बच्चा लाये और क़ुरबानी की तैयारियां शुरू हुई,

अब्दुल का दस साल का लड़का सलीम गुमसुम सा ये सब देख रहा था,
अब्बू से पूछा - अब्बू ये सब क्यों हो रहा है?
अब्दुल बोला - बेटा हमारी परम्परा है की सबसे प्यारी चीज को कुर्बान करो तो जन्नत मिलती हैI ये सब तेरी ख़ुशी के लिए हो रहा हैI
सलीम - अब्बू आप ही तो कहते है मेरा सलीम बेटा दुनिया में सबसे प्यारा हैI तो फिर इस बेजुबान को क्यों? 

"मौलिक व अप्रकाशित"

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Comment by Sheikh Shahzad Usmani on September 17, 2016 at 3:58pm
आदरणीय हरिकिशन ओझा जी। आपने किसी भी टिप्पणी के वास्तविक भाव व उद्देश्य को सही रूप में नहीं लिया है, इसका मुझे दुःख है। मैं यहाँ लघुकथा संदर्भ में ही तथ्य तथा कथ्य सम्प्रेषण संबंधी टिप्पणियाँ लिखने का अभ्यास कर रहा हूँ। आपकी रचना में स्पष्ट रूप से दो मुस्लिम पात्र हैं। अब्दुल का 'दस साल' का बेटा सवाल कर कर रहा है न कि चार-पांच साल का! दस साल का बेटा सैंकड़ों बार मांसाहार कर चुका होगा और कई बार ऐसी क़ुर्बानी ईद पर देख चुका होगा तथा मीट मार्केट से कई बार ख़रीददारी हेतु जा चुका होगा! दस सालों में उसने क़ुर्बानी के जज़्बे व तक़्बे की तक़रीरें भी सुनी होंगीं, इसलिए यह सवाल पिता से करना वास्तविकता से दूर हो रहा है! मैंने आपके कथ्य सम्प्रेषण पर कुछ नहीं कहा था। आपका कथ्य तभी सही तरह से उभर कर सार्थक होगा जब रचना में तथ्य भी वास्तविक हों । मोहतरम जनाब समर कबीर साहब भी तथ्यों की त्रुटि ही इंगित कर रहे थे, जिसका मैंने समर्थन किया है। आप जो संदेश सम्प्रेषित करना चाहते हैं, उसके लिए रचना में परिमार्जन की ज़रूरत है। क़ुर्बानी के इस पर्व के वास्तविक संदेश को समझ कर कुछ बेहतर भी तो लिखा जा सकता है, किसी की भावना को आहत किए बग़ैर! मुझे इन्टरनेट पर इस पर्व पर की जाने वाली निम्नस्तरीय टिप्पणियों पर भी हैरत है।
Comment by harikishan ojha on September 17, 2016 at 3:07pm

Mananiya yograj ji

me OBA ke har sadasya ka samman karta hu agar meri tipani se kisi ko thes pahuchi ho to me mafi mangta hu, rahi bat dharmik bhavna ki mene is katha me koi galat bat nahi kahi hai, shekh usman ji ne ise apni tipani me likhit bat "किसी भी मुस्लिम परिवार में कभी भी ऐसे संवाद की गुंजाइश ही नहीं रहती क्योंकि तमाम ज़रूरी तालीम व इल्म बच्चों को होश संभालते ही दे दी जाती है" ne ise dharm se jod diya, yaha par wo kis talim ki bat kar rahe hai aap khud samajte hai, me to sammer ji ka bada fen hu, unki likhi har katha or kavita ko padta hu. ak hi bat kahuga ki padhe likhe logo hi kuritiyo ko khatam kar sakte hai, Dhanyawad


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on September 17, 2016 at 11:06am

हरिकृष्ण ओझा जी, मंच के वरिष्ठ और सम्माननीय सदस्यों को दी गई आपकी टिप्पणियाँ शिष्टाचार और आपेक्षित मंचीय आचरण के विरुद्ध और भावनाओं को आहत करने वाली हैं, जिनकी मैं कड़े शब्दों में निंदा करता हूँI ओबीओ का यह पवित्र स्थल किसी भी धर्म, समुदाय, जाति, भाषा अथवा किसी भी "वाद" से ऊपर हैI हमारा यदि कोई वाद है तो वह है "राष्ट्र"I अत: किसी भी धार्मिक भावनाएँ भड़काने वाले व्यक्ति के लिए यहाँ न स्थान है न ही उसकी कोई आवश्यकताI आपकी विवादास्पद एंव आपत्तिजनक टिप्पणियाँ तो पहले ही हटा दी गई हैं, यदि आप अपने इस कृत्य के लिए अगले 24 घंटे में क्षमा नहीं मांगते तो आपकी सदस्यता ही तत्काल प्रभाव से समाप्त कर दी जाएगीI


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on September 16, 2016 at 10:56pm

हरिकिशन ओझा जी, 

आप रचनाकर्मी हैं, तो आपसे न केवल रचनाओं की अपेक्षा होती है बल्कि शिष्टाचार और संयत व्यवहार की भी अपेक्षा होती है। 

आपने जिस ढंग और व्यवहार में टिप्पणियाँ की हैं वह किसी तौर पर सभ्य भाषा में नहीं है। आप अवश्य जानें कि इस मंच पर आपसी समझ को ’सीखने-सिखाने’ का आधार माना जाता है. भावनाएँ अत्यंत आपसी होती हैंं, तभी सीखने के वक़्त कठिन साधना संभव हो पाती है । आपको जानकारी हो, कि आदरणीय समर साहब इस ओबीओ-परिवार के वरिष्ठ और सम्मानित सदस्य हैं। उनके प्रति और उनको लेकर हुई आपकी टिप्पणी बहुत ही घटिया स्तर की है। आपकी उक्त टिप्पणियाँ तत्काल प्रभाव से हटाई जा रही हैं। 

Comment by harikishan ojha on September 16, 2016 at 8:21pm

राम शिरोमणि जी आप का बहुत बहुत धन्यवाद

Comment by harikishan ojha on September 16, 2016 at 8:20pm

मीना पाठक जी आप का बहुत बहुत धन्यवाद

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on September 15, 2016 at 9:45pm
मेहरबानी कर मोहतरम जनाब समर कबीर साहब की सार्थक महत्वपूर्ण टिप्पणी पर त्वरित ग़ौर फ़रमाइयेगा। क़ुर्बानी के क़ायदे व मक़सद पर सही जानकारी लेते हुए। किसी भी मुस्लिम परिवार में कभी भी ऐसे संवाद की गुंजाइश ही नहीं रहती क्योंकि तमाम ज़रूरी तालीम व इल्म बच्चों को होश संभालते ही दे दी जाती है। आप जो संदेश सम्प्रेषित करना चाहते हैं, उसके लिए जनाब समर कबीर साहब की सलाह पर ग़ौर फ़रमाइयेगा।
Comment by Samar kabeer on September 15, 2016 at 3:44pm

जनाब हरिकिशन ओझा साहिब आदाब,आपकी लघुकथा पढ़ कर ऐसा लगता है कि आप क़ुर्बानी के विषय में कम जानकारी रखते हैं,क़ुर्बानी बकरी के बच्चे की नहीं होती,उसके भी कुछ नियम और क़ायदे हुआ करते हैं,होना ये चाहिये कि हम जिस विषय पर क़लम उठायें पहले उसकी जानकारी एकत्रित कर लें फिर लिखें तो लेखन प्रभाव शाली होगा वरना उसे बेसिर पैर की बात ही समझा जायेगा । कृपया मेरी बात को अन्यथा न लें ।

Comment by Meena Pathak on September 15, 2016 at 3:34pm

वाह्ह ! बहुत सटीक 

बधाई 

Comment by ram shiromani pathak on September 15, 2016 at 12:13pm
वाह भाई वाह।ज़ोरदार।बधाई आपको

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