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= एक =

कोई इंसा "किसी" के लिए - 

सिसकता है, मचलता है, तड़पता है......

रोता है, मुस्कुराता है....

गाता है, गुनगुनाता है....

और "अपने" लिए -

जीवन के अनंत दुखों का पर्याय बन जाता है ll

 

  = दो =

 

मैं –

जीवन वलय की एक त्रिज्या मात्र –

तुम आकर मुझे व्यास बना दो .

ताकि मैं भी जीवन वलय की परिधि का

कर सकूं स्पर्श.

और एहसास कर सकूँ किसी पूर्णता का....


 


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Comment

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Comment by आशीष यादव on May 21, 2011 at 10:22pm
dono muktak bahut achchhe.
Comment by विवेक मिश्र on May 21, 2011 at 7:59pm

simply awasome..

Comment by Jaya Sharma on May 20, 2011 at 6:57am

तुम आकर मुझे व्यास बना दो

bahut hi sunder kalpna.

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