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आप सभी ने मेरी ग़ज़लों को सराहा...धन्यवाद के साथ हिंदी का एक गीत आप सबके समक्ष रख रहा हूँ...आशा करता हूँ कि इसके लिए भी आप लोगों का आशीर्वाद मुझे पूर्ववत मिलेगा...

= सावन के अनुबंध =

सावन के अनुबंध...

            नयन संग सावन के अनुबंध..... 

रिश्तों की ये तपन कर गई, मन मर्यादा भंग,

हल्दी, सेंदुर, माहुर, हम, तुम, कितने प्राकृत रंग,

           जीवन के बंधन सारे यूँ आज हुए स्वच्छंद ......

           नयन संग सावन के अनुबंध...

तुम और मुझ से- हम तक आते, सदियाँ बीत गईं,

अब कैसा खोना-पाना, जब सांसें रीत गईं, 

           फूल, सितारे, ख़ुशबू, तुम, हम- जीवन के छलछंद ....

           नयन संग सावन के अनुबंध...

 

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Comment by Ravindra Koshti on May 16, 2011 at 12:01am

बहुत ही खुबसुरत गीत बनाया है आपने नमन जी!

 

Comment by डॉ. नमन दत्त on May 15, 2011 at 10:15pm

आप सभी विद्वतजनों का आभार...

आशा करते हैं कि आप सब का यही स्नेह सदैव बना रहेगा....

पुनःश्च आभार....


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on May 15, 2011 at 9:46pm
नमन दत्त जी , बहुत ही खुबसूरत गीत बन पड़ी है , एक एक बंद मनभावन है, बधाई आपको और सलाम आपके कलम को |
Comment by sangeeta swarup on May 15, 2011 at 7:55pm

तुम और मुझ से- हम तक आते, सदियाँ बीत गईं,

अब कैसा खोना-पाना, जब सांसें रीत गईं, 

सुन्दर भाव से रचा गीत ..

कृपया ध्यान दे...

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