साथियो,
सादर वंदे,
मैं संगीत की साधना में रत उसका एक छोटा सा विद्यार्थी हूँ और कला एवं संगीत को समर्पित एशिया के सबसे प्राचीन " इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय, खैरागढ़ " में एसोसिएट प्रोफ़ेसर के पद पर कार्यरत हूँ...मुझे भी ग़ज़लें कहने का शौक़ है...मैं " साबिर " तख़ल्लुस से लिखता हूँ... अपनी लिखी दो ग़ज़लें आप सबकी नज़र कर रहा हूँ...नवाज़िश की उम्मीद के साथ......
= एक =
रूह शादाब कर गया कोई.
दर्द आबाद कर गया कोई.
ख़ुश्क़ आखों को झलक दिखला के,
चश्मे-पुरआब कर गया कोई.
जाँ तलक आशनाई का आलम,
दिल को बरबाद कर गया कोई.
आशियाँ हमने ख़ुद जला डाला,
ऐसी फ़रियाद कर गया कोई.
रख के लब मेरी पेशानी पे,
मुझको नायाब कर गया कोई.
= दो =
दुनिया है बाज़ार सुन बाबा.
हर नज़र करे व्यापार सुन बाबा.
बेमानी है एहसासों की बात यहाँ,
ख़ुदग़रज़ी है प्यार सुन बाबा.
तेरी चादर तेरी लाज बचा पाए,
उतने पाँव पसार सुन बाबा.
हर एक गरेबाँ तर है लहू से, देखो तो-
ये कैसा त्यौहार सुन बाबा.
मस्जिद में हों राम, ख़ुदा मंदिर पाऊँ,
ऐसा मंतर मार सुन बाबा.
इंसानियत जो ज़ेहनों में भर दे "साबिर"
हुनर वोही दरकार सुन बाबा.
Comment
bahut hi umda gazale... Dr Sahab...bahut bahut badhai aapko...
//आशियाँ हमने ख़ुद जला डाला,
ऐसी फ़रियाद कर गया कोई//
वाह वाह वाह, बहुत खूब फ़रियाद में ऐसा असर , बेहतरीन ख्यालात,
//मस्जिद में हों राम, ख़ुदा मंदिर पाऊँ,
ऐसा मंतर मार सुन बाबा//
आय हाय , बुलंद सोच की परिणति है यह शे'र , बहुत ही सुंदर ,
दोनों गज़ले दोनों आँखों की तरह है , यानी प्यारी प्यारी , दाद कुबूल करे दत्त साहिब |
जाँ तलक आशनाई का आलम,
दिल को बरबाद कर गया कोई.
मस्जिद में हों राम, ख़ुदा मंदिर पाऊँ,
ऐसा मंतर मार सुन बाबा.
खूबसूरत अशआरों से सजी हैं आपकी दोनों ग़ज़ल....
आप तमाम सुख़नशनास हाज़रीन ने मेरी हिम्मतअफज़ाई की, इसके लिए मैं बेहद शुक्रगुज़ार हूँ...
ये मेरी ख़ुशनसीबी है कि आप सबने मुझ नाचीज़ के कलाम को तवज्जो दी....
मैं इसके लिए दिल से इन्तेहाई तौर पर मशकूर हूँ...
शुक्रिया...सदशुक्रिया....
waah bahut khoob -
रूह शादाब कर गया कोई.
दर्द आबाद कर गया कोई.
laajwaab ghazlen badhaae swweekar karen |
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