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sangeeta swarup
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M.A. Economics ,

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पर्यावरण पर कुछ हाइकु

 नीर भरी थी 

विष्णुपदी  निर्मल 

क्लांत  है अब । 
 
***************
पेड़ों को काटा 
छीना था सरमाया 
धरती…
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Posted on July 6, 2012 at 10:45am — 4 Comments

पिघलता पत्थर

अमावस सी ज़िंदगी में

अचानक ही 
छिटक गयी चाँदनी 
एक बादल की ओट से …
Continue

Posted on July 27, 2011 at 4:00pm — 16 Comments

कतरने ख़्वाबों की

ख्वाब मेरे



कपड़े की 
कतरनों के माफिक 
कटे फटे 
जब भी सहेजना चाहा 
कतरनों की तरह ही 
बिखर जाते हैं 
फिर भी 
मैं…
Continue

Posted on June 26, 2011 at 3:58pm — 3 Comments

सूखी हुई ख्वाहिशें

ज़िन्दगी का दरख्त
हो गया है ज़र्जर
समय की दीमक ने
कर दी हैं जड़ें खोखली
तनाव के थपेड़ों ने
झुलस दी है छाल
ख्वाहिशों के पत्ते
अब सूखने लगे हैं
और झर जाते हैं
प्रतिदिन स्वयं ही
परिस्थितियों की आँधियाँ
उडा ले जाती हैं दूर
और जो बच जाते हैं
कहीं इर्द - गिर्द
उन पर अपनों के ही
चलने से होती है
आवाज़ चरमराहट की
उस आवाज़ के साथ ही
टूट जाती हैं सारी उम्मीदें
और ख़त्म हो जाती हैं
सूखी हुई ख्वाहिशे .

Posted on June 23, 2011 at 12:34pm — 5 Comments

Comment Wall (7 comments)

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At 3:31am on May 7, 2015,
सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर
said…

आपको ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार की ओर से जन्म-दिवस की हार्दिक शुभकामनायें!

At 10:41pm on July 6, 2012, SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR said…

आदरणीया संगीता स्वरुप जी आप को यहाँ भी देख और मित्र के रूप में पा मन अभिभूत हुआ अपना स्नेह और सुझाव बनाये रखें स्वागत है आप का.. अब आनंद और आएगा ..जय श्री राधे
भ्रमर ५

At 8:13pm on July 6, 2012, डॉ. सूर्या बाली "सूरज" said…

संगीता जी सादर नमस्कार आपकी सुंदर प्रतिक्रिया के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। आपका मंच पर हार्दिक स्वागत और अभिनंदन है !

At 4:35pm on September 2, 2011, Deepak Sharma Kuluvi said…

aADBHUT RACHNAYEN

At 8:43pm on May 31, 2011,
मुख्य प्रबंधक
Er. Ganesh Jee "Bagi"
said…
At 5:03pm on May 14, 2011, PREETAM TIWARY(PREET) said…
At 3:03pm on May 14, 2011, Admin said…
 
 
 

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