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मैं तुम्हे पढना चाहता हु ...

तुम्हारी बातें
एक -एक शब्द जैसे ॥

श्वासों का आना -जाना
किताब के पन्ने
पलटने जैसा ॥

तुम्हारी मुस्कराहट
कविता पढने जैसी ॥

तुम्हारी हँसी
ग़ज़ल की पंग्तिया ॥

तुम्हारी उम्र का
हर गुजरा वक़्त
एक अध्याय समाप्त होने जैसा ॥

तुम्हें समझना
एक समझ न आने वाली
रहस्यमई कहानी जैसा ॥

सचमुच, तुम्हें पढना
एक किताब पढने जैसा ॥

हे ! प्रिय !!!
मैं पढ़ूंगा तुम्हें जीवन -पर्यंत
क्योकि ....
तुम्हें पढ़ना अच्चा लगता है ॥

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Comment

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Comment by baban pandey on June 26, 2010 at 6:29am
sahi kaha juile ji aapne ,aur Ravina ji ne bhi ....naari charit ko padna itna aashan nahi , jitna log samajhate hai

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Rana Pratap Singh on June 26, 2010 at 12:52am
bahut sundar...

तुम्हारी मुस्कराहट
कविता पढने जैसी ॥

तुम्हारी हँसी
ग़ज़ल की पंग्तिया ॥

kyon na achcha lagega.....sundar likhane ke liye badhai ho
Comment by Neet Giri on June 25, 2010 at 7:40pm
तुम्हें समझना
एक समझ न आने वाली
रहस्यमई कहानी जैसा ॥
100% satya
Comment by Rash Bihari Ravi on June 25, 2010 at 7:37pm
हे ! प्रिय !!!
मैं पढ़ूंगा तुम्हें जीवन -पर्यंत
क्योकि ....
तुम्हें पढ़ना अच्चा लगता है ॥

jai ho bahut badhia

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