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दायरे सिमट के रह गए हैं यूँ ग़म-ए-रोज़गार में,
दोस्तों से भी मिला अब तो करते हैं वो बाज़ार में....

पैसा तो हाथों का मैल होता है,
लेकिन अक्सर ये मलाल होता है.
होने लगते हैं हाथ मैले तो,
रिश्तों से क्यूँ, इंसान हाथ धोता है.

‎"नागहाँ ये अजब सा मुकाम आया, 
आज तन्हाई को भी तन्हां पाया.."

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