कभी-कभी मैं सोचता हूँ की
ये रोटियाँ, रोटियाँ न हो कर
जैसे कोई रबड़ हैं
जो मिटा देती हैं
भूख को,
लेकिन असल समस्या
तो उस कलम की है
जो लिखती जा रही है,
भूख, भूख, भूख.....
मुक़द्दर में तू कैसे-कैसे ईनाम लिखता है
कहीं की सुबह, कहीं की शाम लिखता है |
करूँ तो करूँ कैसे तेरी इनायतों का शुक्रिया
कहाँ-कहाँ की रोटियों पे तू मेरा नाम लिखता है ||
भगवान के पास सब कुछ है,
कर ही सकते क्या उसको अर्पण |
किसी बहाने बस वो देखा करता,
तुम्हारी भावनाओं का दर्पण ||
ये भी क्या खूब रही
की
मेरा उद्देश्ये
तुमने निरुददेश्ये कर दिया
अब मैं कोई 'कारण' नहीं
बस 'अकारण' हूँ
और
मेरे लिए भी हो
तुम,,,
सिर्फ एक 'नेकी'....
इसलिए अब
मैं तुमको
कुएं में डालता हूँ !!!
Comment
शुक्रिया सौरभ जी, और क्षमा चाहता हूँ जाने कैसे आपका कमेन्ट नज़रंदाज़ हो गया...देरी के लिए खेद है.
भाई अजय जी, आपकी चारों रचनाओं के लिये बधाई.
धन्यवाद आशा जी , जो आपको रचाएं पसंद आयी....
chhotee chhotee rachnaon me gahn anubhuti hai jivan ki bahut umda
मेरी बस यूँ ही सी लिख दी गयी कविताओं पर जब आप जैसे विद्वानों के हौसला अफ़ज़ही करते शब्द पढ़ता हूँ तो मन में एक अजीब जी खुशी मिलती है जिसको की शब्दों में अभिव्यक्त कर पाने में मैं असमर्थ हूँ, लेकिन आपने जो अपना कीमती समय मेरी पंक्तियों के लिए इनायत फरमाया उसके लिए मैं हृदये से आभारी हूँ प्रभाकर जी...
चारों ही रचनाये बहुत सुन्दर और सारगर्भित हैं, मेरी हार्दिक बधाई स्वीकार करें अजय जी.
अजय जी , आपकी चरों रचनाएँ देखन में छोटन लगे घाव करे गंभीर टाइप की हैं, बधाई स्वीकार करें , आगे भी आपकी रचनाएँ और अन्य साथियों की रचनाओं पर आपके बहुमूल्य विचारों का स्वागत रहेगा |
Bahut Bahut Shukriya Abhinav ji.
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