For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

AjAy Kumar Bohat's Blog (21)

" नपुंसक सोच "

वे विचार करते हैं

पर नहीं जनम लेता कोई नया विचार बाँझ मस्तिष्क से

इसी सोच विचार में बैठे रहने ने

अकड़ा दी है उनकी पीठ और गर्दन

कहीं से आती भी है आहट

किसी  नए विचार की

तो उस पर ध्यान देने कि अपेक्षा

वो करते हैं प्रयास

अकड़ी गर्दन घुमा कर देखने का कि

ये आवाज़ कहाँ से आती है

तब जाके जान पाता हूँ मैं कि

सुनने से ज़यादा , उनके लिए महत्वपूर्ण है

देखना आवाज़ कि शकलो-सूरत

और इस तरह नहीं ले पाते

वे ' गोद ' किसी भी नए विचार को…

Continue

Added by AjAy Kumar Bohat on November 25, 2013 at 10:18pm — 10 Comments

“ पितृ-सत्ता से संवाद “

नारी को दुर्गा, नारी को शक्ति, नारी को जननी , कह कर बुलाते हो

और जब वो नन्ही सी बेटी बन कर आये

इस खबर से क्यों तुम डर जाते हो…

जानते हो भलीभांति , जब खोली तुमने आँखें

तो पाया माँ का प्यार ,

बहन का दुलार

आगे किसी मोड़ पर जीवन-संगिनी भी मिली

सेवा समर्पण लिए

 

प्रश्न मेरा केवल इतना है तुमसे, लेकिन

क्या सीखा है तुमने ... केवल लेना ही लेना ???

तुमको तो बनाया है, सर्वथा-शक्तिशाली

उस सर्व-शक्तिमान ने

तभी तो…

Continue

Added by AjAy Kumar Bohat on August 19, 2013 at 2:00pm — 5 Comments

"श्री कृष्ण को समर्पित कुछ दोहे"

सुध-बुध सारी भूल गयी, भूली जान-अजान,

कान्हा ने जब छेड़ दी, मधुर-मुरली की तान.



मुख पर छाए लालिमा, खिले अधर मुस्कान,

कान्हां जी को कैसा लागे राधा-राधा नाम.



जिसके हरी हैं सारथि, निश्चय उसकी जीत,

जिस मन हरी बसें, उस मन प्रीत ही प्रीत.



लाज बचाई आपने, सुन अबला मन की पीर,

अबला अब सबला भयी , छोटो है गयो चीर.



दरस तुमरे पाने को, जुग-जुग जाते बीत,

भाग बढे सुदामा के, जो भये तुम्हारे मीत.



हर युग अवतार लिए, खेले क्या-क्या दांव,…

Continue

Added by AjAy Kumar Bohat on August 10, 2012 at 8:30am — 8 Comments

"निशानी"

थाम कर तुम्हारी उँगलियाँ
जब ये चलेगा
मोहब्बत की एक नयी इबारत
लिखी जाएगी,
पहली मुलाक़ात की
'निशानी'
अपना कलम मैं तुमको दे आया हूँ
जो भी लिखोगे इस से
वो तकदीर मेरी
बन जाएगी.......

Added by AjAy Kumar Bohat on June 28, 2012 at 4:38pm — 1 Comment

एक ग़ज़ल

मिल कर तुमसे न फिर देर तलक होश आया
जैसा सोचा था, उस से कहीं बढ़कर तुम्हें पाया
 
उस मोड़ से आप तो कर गए 'खुदा-हाफ़िज़' लेकिन

चलता रहा देर तलक साथ मेरे आपका साया

 
तेरे हाथों की खुशबु हो जाये क़ैद मुठ्ठी में

यही सोच, किसी शै को देर तक न मैं छू…
Continue

Added by AjAy Kumar Bohat on June 28, 2012 at 2:34pm — 1 Comment

" फैशन "

कितना कठिन हो जाता है

लिखना

कई बार

'फैशन' के अनुरूप

कैसे साध रखा है हमने

अपने मन को

की वह सोचता है

बिलकुल किसी कंप्यूटर प्रोग्राम की तरह

किस तरह रख पाते हैं हम

अपने मन के भावों को

अनुशासन में

और

वे प्रकट होते हैं

केवल

एक दिवस-विशेष पर...

एक विशेष दिन ही जागता है जज़्बा देश-प्रेम का

या

मातृ-पितृ भक्ति का..

किसी एक दिन ही

आती है

भूली-बिसरी

बहन की याद..

ऐसे ही कई लोग हैं…

Continue

Added by AjAy Kumar Bohat on May 13, 2012 at 9:30pm — 13 Comments

...आरुषि...

मेरी बात को सुन लड़की,

कुछ सपने मत बुन लड़की

सपनो को लगेगा घुन लड़की

मेरी बात को सुन लड़की...



मेरी बात मान लड़की

कुचल अपने अरमान लड़की

राक्षशों को पहचान लड़की

मेरी बात मान लड़की...



मत कर तू प्यार लड़की

ऐतराज़ करेगी 'तलवार' लड़की

बहुत तेज़ है धार लड़की

मत कर तू प्यार लड़की...



चीरती है सब जहां की ख़ामोशी

कौन समझ रहा माँ की ख़ामोशी

ठन्डे पड़े जिस्मोजां की ख़ामोशी

चीरती है सब जहां की ख़ामोशी



मेरी बात को सुन…

Continue

Added by AjAy Kumar Bohat on May 13, 2012 at 9:09pm — 5 Comments

...सिग्रेट...(२)

होठों से छुआ भी…

Continue

Added by AjAy Kumar Bohat on May 13, 2012 at 9:07pm — 11 Comments

" तब और अब "

पहले हँसता था
खुश था
पर लोग दुखी थे
सो करते थे दुखी
अब एक उदासी ओढ़ ली है
और
चुप रहता हूँ
चिपका लिया है दुःख का मुखौटा
पर
अब लोग खुश हैं
दुःख को देख कर
और मैं उनको सुखी देख कर
खुश हूँ 
फर्क इतना है...
पहले अपने ही में खुश था
अब जान लिया है लोगों की ख़ुशी…
Continue

Added by AjAy Kumar Bohat on May 12, 2012 at 8:00pm — 10 Comments

" सिगरेट "

मैं एक जिस्म हूँ
सिर्फ 
एक ठंडा जिस्म
और मेरा
ठंडा बेजान जिस्म
पड़ा है लावारिस
कई जगहों पर
रास्तों में, फुटपाथ पर, कूड़े के ढेर पर,
बसों में, रेलवे-प्लेटफार्म पर 
लोगों की ठोकरों में,
पैरों में आता हुआ
या फिर
मिल जाउंगी सुलगती..
ऐश-ट्रे में
जो सजी है मेज पर
और ... मेज
घर की…
Continue

Added by AjAy Kumar Bohat on May 12, 2012 at 7:44pm — 8 Comments

‎" ए.सी. और प्राइवेसी "

हे ईश्वर 

यह सच है की,

मैंने चाहा 'ए.सी' 

ये भी सच

मैंने माँगी 

'प्राइवेसी' 

हे अंतर्यामी 

रही चाहत मेरी सदैव 

रहूँ मैं लाईम-लाईट में

और

टिका रहे हर वक़्त मुझ पर ही कैमरा

आती रहे निरंतर कानो में

हरे-हरे नोटों के

फड़फड़ाने की आवाज़...

लेकिन

मेरी मुद्दत की तमन्नाओं का

ये क्या तर्जुमा.... मेरे परवरदिगार

आज खड़ा हूँ मैं बन कर

ATM का चौकीदार !!!



~…

Continue

Added by AjAy Kumar Bohat on May 11, 2012 at 9:59pm — 6 Comments

~ कविता के पंछी या पंछियों की कविता ~

थिरक-थिरक
नाचता   मोर ... फिर 
देख  कर
पाँव अपने
हो जाता बोर
---
कुहू कुहू गाती कोयल
मन को मनभाती कोयल
पराये घोंसले में देकर अंडे
कहाँ जाने फुर्र हो जाती कोयल 

© AjAy Kum@r

Added by AjAy Kumar Bohat on May 11, 2012 at 11:56am — 6 Comments

भीड़...अजय कुमार बहोत

मैं
भीड़ हूँ
इस लोकतंत्र के ढाँचे की मैं रीढ़ हूँ
जी हाँ
मैं भीड़ हूँ...

तिनका-तिनका जोड़ता दिन का
रोज़ बिखरता-जुड़ता
मन-आशाओं का नीड़ हूँ
मैं भीड़ हूँ...

कहाँ फुर्सत
वैष्णव-जन को,
की जाने मुझ को
एक परायी पीड़ हूँ
मैं भीड़ हूँ...

~ © AjAy Kum@r

Added by AjAy Kumar Bohat on May 11, 2012 at 11:30am — 10 Comments

" भीख "

मैं आपसे भीख मांगता हूँ...
क्या कभी आपसे किसी ने ऐसा कहा है,
उसको ऐसा क्यूँ लगा की
आपसे भीख मांगी जाए,
उसको कैसे यह अंदाज़ा है की आपके पास भीख है,
आपके पास भीख कहाँ से आई,
आपने किस से मांगी थी
भीख.....

© AjAy Kum@r ~

Added by AjAy Kumar Bohat on April 13, 2012 at 8:30pm — 6 Comments

"जीवन-चक्र "

' जान ' तू मर गयी थी
सदियों पहले
और किसी को
पता न चला
कुछ भी..
और शायद
कोई बड़ी बात नहीं की,
तू मर गयी हो अब भी !
और..
पता न चल सके
मुझको भी /
हत्यारा कौन था ?
या
हत्यारा कौन है !
क्या करूँगा मैं यह जानकर
जबकि, एक हत्यारा तो हरदम
साथ रहता है
मेरे भी....
और
शनः - शनः जान रहा हूँ मैं की
निरंतर
होती रही इन हत्याओं का तारतम्य ही
है शायद
"जीवन-चक्र "
© AjAy Kum@r

Added by AjAy Kumar Bohat on April 13, 2012 at 8:47am — 5 Comments

"धूल से सने तीन किस्से "

धूल भरी आँधी चली, सारी धूल घर में आ गयी,
मगर आपके चरणों की धूल मेरे घर में नहीं आयी ,
आप कब आ रहे हैं मुझसे मिलने?

धूल भरी आंधी चली, सारी धूल घर में आ गयी,
आप तक पहुँचने के लिए, क्या सहारा लेना पड़ेगा आँधी का,
मुझ रास्ते की धूल को.....

धूल भरी आँधी चली, सब और धूल ही धूल छा गयी,
ओह्ह , आप तो घर के खिड़की दरवाज़े सब बंद रखते हैं,
ये गोग़ल्स भी आप पर खूब फबते हैं....

.
© AjAy Kum@r

Added by AjAy Kumar Bohat on April 13, 2012 at 8:30am — No Comments

चंद फुटकर शेर :

अंदाज़ क्या खूब हैं उनकी नज़रों के या रब,

किस अंदाज़ से वो नज़र अंदाज़ किया करते हैं |
                    -x-
अदा होती गयीं ज्यों-ज्यों वफ़ा की किश्तें,
और भी साफ़ होते गए स्वार्थ के रिश्ते |
                    -x-
एक बस में बैठ, माँ तो चली गयी अपने घर,
मेरा मन अब भी रोता भटकता, बस-स्टैंड पर |
                    -x-
दिन भर…
Continue

Added by AjAy Kumar Bohat on January 7, 2012 at 9:00pm — 6 Comments

चार रचनायें.....

  • (१) भूख

कभी-कभी मैं सोचता हूँ की

ये रोटियाँ, रोटियाँ न हो कर

जैसे कोई रबड़ हैं

जो मिटा देती हैं

भूख को,

लेकिन असल समस्या

तो उस कलम की है

जो लिखती जा रही है,

भूख, भूख, भूख.....

  • (२) मेरा नाम

मुक़द्दर में तू कैसे-कैसे ईनाम लिखता है

कहीं की सुबह, कहीं की शाम लिखता है |

करूँ तो करूँ कैसे तेरी इनायतों का शुक्रिया

कहाँ-कहाँ की रोटियों पे तू मेरा नाम लिखता है…

Continue

Added by AjAy Kumar Bohat on January 3, 2012 at 7:00pm — 10 Comments

फुटकर शेर

दायरे सिमट के रह गए हैं यूँ ग़म-ए-रोज़गार में,
दोस्तों से भी मिला अब तो करते हैं वो बाज़ार में....

पैसा तो हाथों का मैल होता है,
लेकिन अक्सर ये मलाल होता है.
होने लगते हैं हाथ मैले तो,
रिश्तों से क्यूँ, इंसान हाथ धोता है.

‎"नागहाँ ये अजब सा मुकाम आया, 
आज तन्हाई को भी तन्हां पाया.."

Added by AjAy Kumar Bohat on May 21, 2011 at 7:50am — No Comments

~हिंसा~

यूँ तो 

बहुत पहले से 
रखी थी 
वह किताब शेल्फ में
उठा कर…
Continue

Added by AjAy Kumar Bohat on April 27, 2011 at 4:30pm — 4 Comments

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"धरा पर का फ़ासला? वाक्य स्पष्ट नहीं हुआ "
1 minute ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय Richa Yadav जी आदाब। ग़ज़ल के अच्छे प्रयास के लिए बधाई स्वीकार करें। हर तरफ शोर है मुक़दमे…"
31 minutes ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"एक शेर छूट गया इसे भी देखिएगा- मिट गयी जब ये दूरियाँ दिल कीतब धरा पर का फासला क्या है।९।"
32 minutes ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई अमित जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल से मंच का शुभारम्भ करने के लिए बहुत बहुत हार्दिक…"
36 minutes ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' जी आदाब।  ग़ज़ल के अच्छे प्रयास के लिए बधाई स्वीकार…"
43 minutes ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"2122 1212 22 बात करते नहीं हुआ क्या है हमसे बोलो हुई ख़ता क्या है 1 मूसलाधार आज बारिश है बादलों से…"
2 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"खुद को चाहा तो जग बुरा क्या है ये बुरा है  तो  फिर  भला क्या है।१। * इस सियासत को…"
4 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"सादर अभिवादन, आदरणीय।"
4 hours ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"ग़ज़ल~2122 1212 22/112 इस तकल्लुफ़ में अब रखा क्या है हाल-ए-दिल कह दे सोचता क्या है ये झिझक कैसी ये…"
8 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"स्वागतम"
8 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .

दोहा पंचक  . . . .( अपवाद के चलते उर्दू शब्दों में नुक्ते नहीं लगाये गये  )टूटे प्यालों में नहीं,…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर updated their profile
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service